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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Friday, 28 October 2011

मायावती, मीडिया और नोएडा का अपशकुन


तो क्या मायावती अगली बार फिर भी मुख्यमंत्री बन पाएंगी? सवाल दिलचस्प है कि क्या मायावती अगली बार मुख्यमंत्री बन पाएंगी? यह सवाल उन की नोएडा यात्रा को ले कर है. अभी तक तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसी भी मुख्यमंत्री के लिए नोएडा एक अपशकुन की तरह रहा है.

किसकी टोपी, किसके सिर


निगाहें कहां हैं. निशाना किधर है. और घायल किसे होना है. बात सियासत की हो या रंगमंच की. सबकुछ पहले से लिखा होता है. लेकिन कभी-कभी ऐसी अनहोनी हो जाती है जो सब किये कराये पर पानी फेर देती है.

राह चलेगा हाथी, बाकी रहे न कोय


प्रमोद कुमार 

बसपा चुनावी तैयारियों के मामले में सबसे आगे है. चुनावी रणनीति के तहत अन्ना फैक्टर को भुनाने के लिए मुख्यमंत्री मायावती ने 'आपरेशन क्लीनÓ चला रखा है, इसी क्रम में उन्होंने दागी और भ्रष्टाचार के आरोप में लोकायुक्त की चपेट में आए अपने कई मंत्रियों को पैदल कर दिया है.

भगवा ब्रिगेड का शंखनाद


प्रमोद कुमार

उत्तर प्रदेश में भाजपा की चुनावी कमान संघ के प्रचारकों ने संभाल ली है. जबकि राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र रथ यात्राओं के जरिए पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं.

निर्यात का मोहजाल!


मृण्मय डे 

आपने पढ़ा होगा, उद्योग एवं वाणिज्य व कपड़ा मंत्री, आनंद शर्मा ने देश के निर्यात को और बढ़ावा देने के लिए वित्तीय वर्ष 2011 में कई प्रोत्साहनों की घोषणा की है. ये घोषणाएं 13 अक्टूबर से लागू हुई हैं. प्रोत्साहन देने की यह घोषणा इस साल 12 फरवरी को इसी तरह की गई घोषणा की कड़ी है. हालांकि, ये घोषणाएं बहुत से लोगों को इस बात के लिए विचार मंथन का अवसर देती हैं कि आखिर इन प्रोत्साहनों से क्या हो सकता है और यूरोप और अमेरिका में चल रहे आर्थिक संकट के दौरान ये प्रोत्साहन निर्यात में कैसे तेजी ला पाएंगे.

चुनावों के तीन-तीन सबक


चेतन भगत

पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी अपने तीनों उपचुनाव हार गई. कांग्रेस के मुखर प्रवक्तागण अपेक्षा के अनुरूप छद्म साहस का प्रदर्शन करते हुए और अन्ना फैक्टर को ज्यादा तूल नहीं देने की कोशिश करते रहे. कुछ कांग्रेस प्रवक्ताओं का अति आत्मविश्वास तो लगभग मुग्ध कर देने वाला था.

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया


बेगम अख्तर मदनमोहन को तब से जानती थीं, जब वे लखनऊ रेडियो स्टेशन पर थे. बेगम दिल्ली आई हुई थी और उन्होंने रेडियो पर मदनमोहन का एक गाना सुना. फिर आधी रात को बेगम अख्तर ने मदनमोहन को फोन किया और कहा कि वही गाना, 'कदर जाने ना सुनाओ.

शेक्सपियर के शहर के अनपढ़ बच्चे


शिखा वाष्र्णेय 

पुस्तकों की दुकानों, पुस्तकालयों, प्रकाशकों, लेखकों का शहर. लेकिन इस शहर में तीन में से एक बच्चा बिना अपनी एक भी किताब के बड़ा होता है.

अन्ना पर अभिभूत है पाकिस्तानी मीडिया!


अर्जुन शर्मा  

भारत में चल रही अन्ना की आंधी की हवाएं सीमा पार पाकिस्तानी मीडिया में भी पहुंच चुकी हैं. पाकिस्तान का अंग्रेजी मीडिया अन्ना के आंदोलन को पूरा महत्व दे रहा है.

सरकार रहे या जाए, नींद पूरी आये


कर्नाटक में भाजपा सरकार संकट में है. हालात इतने बदतर हो रहे हैं कि सरकार बचाना मुश्किल है. भारतीय जनता पार्टी के 'क्राइसिस मैनेजरÓ मीडिया में खबरें चलवा रहे हैं कि उनके रातों की नींद हराम हो गई है और किसी भी कीमत पर वे लोग कर्नाटक की सरकार को बचा लेना चाहते हैं. लेकिन हकीकत यह नहीं है.
राजनीतिक संकट की इस घड़ी में भी भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी दिल्ली की बजाय एक बार फिर नागपुर में हैं. सरकार बचाने का उनका क्राइसिस मैनेजमेन्ट यह है कि उन्होंने अपने दो विश्वसनीय लोगों को सरकार बचाने के काम में लगा दिया है. इन दोनों की हैसियत क्या है वह उनका नाम जानकर ही समझ में आ जाता है. एक हैं विनय सहस्रबुद्धे जो कि रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी के निदेशक हैं तथा नितिन गडकरी के मित्र और परामर्शदाता हैं. क्योंकि भागे हुए विधायक कांग्रेस के संरक्षण में गोवा में आराम फरमा रहे हैं इसलिए गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को भी विधायकों की मान मनौवल के काम में लगा रखा है. खुद गडकरी क्या कर रहे हैं? दोपहर दो बजे घर पर जब एक पत्रकार ने फोन करके बात करनी चाही तो जवाब मिला साहब सो रहे हैं.
इधर दिल्ली में भी हालात अच्छे नहीं है. सुषमा स्वराज हों, अनंत कुमार या अरुण जेटली कोई भी नहीं चाहता कि कर्नाटक की सरकार बचे. अनंत कुमार की खुन्नस है कि अगर वे प्रदेश में मुख्यमंत्री नहीं बन पाये तो भला येदुरप्पा मुख्यमंत्री क्यों बने रहे? अनंत कुमार केन्द्रीय टीम में हैं और वे कभी नहीं चाहेंगे कि कर्नाटक सरकार को दिल्ली का सपोर्ट मिले. कर्नाटक सरकार के जाने के बहाने अरुण जेटली और सुषमा स्वराज संघ को औकात बताना चाहते हैं क्योंकि झारखण्ड में इन नेताओं की मर्जी के खिलाफ  जाकर सरकार बना ली गई थी जिसमें गडकरी की भूमिका अधिक थी. गडकरी को संघ का सपोर्ट था. ये नेता झारखण्ड का बदला कर्नाटक में निकलना चाहते हैं.
अब आप ही सोचिए, कर्नाटक में सरकार बचेगी भी तो कैसे? जब मांझी ही नांव डुबाने में लगा हो तो उसे पार कौन लगाएगा.