तिहाड़ जेल नम्बर 3 में बंद अफजल गुरू ने वहां के अधीक्षक मनोज कुमार द्विवेदी से बातचीत के क्रम में न सिर्फ यह माना है कि संसद पर हमले का सूत्रधार वही था, अलबत्ता उसने पाकिस्तान में हुई तीन महीने की ट्रेनिंग के कई संस्मरणों को उनके साथ सांझा किया है.
जालंधर से अर्जुन शर्मा
देश की संसद पर हुए हमले के मुख्य सूत्रधार अफजल गुरु (गुरु नहीं, गुरू कश्मीर में दूध बेचने वाले ग्वालों की जाति का एक उपनाम है) की फांसी के संदर्भ में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ट्वीट करते हुए लिखते हैं कि जैसा तमिलनाडू विधानसभा ने किया, वैसा यदि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने किया होता तो देश की प्रतिक्रिया क्या वैसी ही होती? इस छोटे से ट्वीट ने कश्मीर समेत सारे देश में एक नई बहस छेड़ दी है. उसी अफजल केे संदर्भ में यह तथ्य पाठकों के लिए काफी रूचिकर रहेगा कि दिल्ली की तिहाड़ जेल नम्बर 3 में बंद अफजल गुरू ने वहां केे अधीक्षक मनोज कुमार द्विवेदी से बातचीत के क्रम में न सिर्फ यह माना है कि संसद पर हमले का सूत्रधार वही था, अलबत्ता उसने पाकिस्तान में हुई तीन महीने की ट्रेनिंग के कई संस्मरणों को उनके साथ सांझा किया है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत और दर्शनशास्त्र के स्नातक मनोज ने अफजल गुरू के साथ की गई करीब 300 घंटे की लंबी बातचीत के आधार पर बाकायदा एक किताब लिखी है जिसमें अफजल के विचारों, उसके कश्मीर के संदर्भ में विश्लेषित दृष्टिकोण व कई अंतरंग बातों का जिक्र है.
उल्लेखनीय है कि तमिलनाडू विधानसभा द्वारा राजीव गांधी के हत्यारों को दी गई फांसी पर राष्ट्रपति से पुनर्विचार करने का प्रस्ताव पारित किया गया है जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी की सजा मा$फ करके रहम की अपील की गई है. कुछ तथ्य और ध्यान दिए जाने लायक है. अफजल गुरू यह स्पष्ट कर चूके हैं कि वह चाहते हैं कि उन्हें जल्द फांसी हो जाए. उन्होंने राष्ट्रपति के पास रहम की अपील भेज कर गलती की है.
2004 में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया अफजल को फांसी की सजा सुनाती है जिसके लिए 20 अक्तूबर 2006 की तिथि तय की जाती है. इसी दौरान राष्ट्रपति को रहम की अपील की याचिका भेजी जाती है.
5 साल बीतने तक वह याचिका पड़ी रहती है गृह मंत्रालय के पास? क्या मजाक है? एक अर्जी को फॉरवर्ड करने में पांच साल! क्या अन्ना हजारे गलत रोते हैं? क्या संसद का अपराधी इसलिए क्षमा कर देने लायक है कि वह कश्मीरी है? फिर कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों से लडऩे की क्या जरूरत है? उमर साहिब उन्हें अपने मंत्रीमंडल में ले सकते हैं. उनका हाथ किसने पकड़ा है? यदि राजीव गांधी के केवल इसलिए रहम के काबिल है कि वे तमिल हैं तो फिर उनके स्थान पर किसी महाराष्ट्रियन या पंजाबी को सजा दिलवाने की सिफारिश भी कर देनी चाहिए थी जयललिता को! देश का मजाक बना दिया है. संविधान को क्षेत्रिय हितों के नीचे कुचला जा रहा है पर सियासतदान केवल तभी सक्रिय होते हैं जब उन्हें लगता है कि उनके अधिकार छिने जा रहे हैं. उन्हें भ्रष्टाचार से रोकने को लोग सड़कों पर उतर आए हैं.

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