थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह के गांव बापोड़ा में ग्रामीणों ने एक बार फिर लोकतंत्र को हरा दिया. गांव के लोगों ने मतदान का दूसरी बार बहिष्कार किया है. कारण सुनेंगे तो सन्न रह जाएंगे. यहां की पंचायत में सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पंच नहीं चाहते कि उनका सरपंच कोई अनुसूचित जाति का हो. आजादी के 6 दशकों बाद उस भारत में जातिवाद की जड़ें इतनी गहरी हैं जो अमेरिका जैसे देश को आंख दिखाने की कूवत रखता है.अनुसूचित जाति के लोगों को सिर्फ नीचा दिखाने के लिए इतनी घिनौनी हरकतें देश में हो रही हैं जो किसी भी तरक्कीपसंद मुल्क के लिए शर्मनाक कही जा सकती हैं हाल की घटना में नारनौल के साथ लगते एक गांव में दलित युवक को शादी में घोड़ी पर बैठने की मनाही कर दी गई। घोड़ी पर बैठने के लिए पुलिस बुलानी पड़ी. फैजाबाद में दो दलित युवतियों को निर्वस्त्र करके गांव में घुमाया गया. मामूली सी बात पर दलित व्यक्ति का कत्ल हो गया.वसुधैव कुटुंबकम की बात करने वाले भारत में इस तरह की घटनाएं होना देश के लिए अपमानजनक नहीं तो और क्या है? हरियाणा प्रदेश में कभी दुलीना, कभी हरसौला, कभी मिर्चपुर जैसे कांड क्यों हो जाते हैं. जाहिर सी बात है कि सरकार गंभीर नहीं है और न ही दमदार है. अन्यथा पंचायतों में इतनी ताकत नहीं होती कि वह अधिकार प्राप्त सरकार के सामने खड़ी हो जाएं. ऑनर किलिंग हो रही हैं, तुगलकी फरमानों के आगे लोगों के अधिकार गौण हो चुके हैंं. खाप पंचायतें जो कभी आपसी सौहार्द की प्रतीक मानी जाती थीं आज लोगों की जान लेने पर आमादा हैं. कहना न होगा कि जिन अनुसूचित जातियों के लोगों को देश में अपमानित किया जाता है, जिनकी इज्जत से खिलवाड़ किया जाता है, उन्हीं की कुर्बानियों को यह देश सज़दा करता आया है. कौन भूल सकता है रानी झांसी की जगह पीठ पर बालक को बांधकर अंग्रेज के सामने तलवार लहराने वाली झलकारी बाई को, या कौन भूल सकता है शिवाजी मराठा की तेग को. साहूजी महाराज, नारायणा गुरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फूले, रविदास, कबीर, सदना और पेरियार को. कानून मंत्री के रूप में अंबेडकर को कौन भूल जाएगा जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए अपने पद से त्यागपत्र तक की पेशकश कर दी थी या फिर दलित समाज में जन्मे बाबू जगजीवन राम को जिन्होंने कृषि मंत्री रहते हुए बरसों से सूखा झेल रहे देश की उदरक्षुधा शांत करने के लिए महत्वपूर्ण काम किया और रक्षा मंत्री रहते हुए यह कहने की हिम्मत जुटाई कि अगर पाकिस्तान भारत पर युद्ध थोपता है तो भारत की सेना पाकिस्तान के अंदर जाकर लड़ेगी. और जिन्होंने ऐसा करके भी दिखाया. यह देश वाल्मीकि की लिखी रामायण का सम्मान तो करता है लेकिन वाल्मीकि समाज को घृणा से देखता है. यह वेदव्यास की लिखी महाभारत पर तो भरोसा करता है लेकिन दलित समाज में जन्मे वेदव्यास को याद नहीं करता. यह अंबेडकर के लिखे संविधान को तो मानता है लेकिन अंबेडकर को नहीं. गहरे अतीत में न भी जाएं तो दस्तावेज गवाही भरते हैं कि देश में इतने बड़े-बड़े घोटालों के बीच आज तक किसी दलित जाति के नेता या अधिकारी का नाम शुमार नहीं है. इतनी बड़ी आबादी के लोग जो देश को विकास की मुख्यधारा में जोडऩे के लिए कड़ी का काम कर रहे हैं उनके साथ अपमानजनक व्यवहार एक समृद्ध संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं वाले देश के लिए कतई न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता.
-राजकमल कटारिया
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