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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Tuesday, 25 May 2010

एक भविष्यद२ष्टा का गुजर जाना


प्रह्‌लाद को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली. वे उसे एंजॉय कर सकते थे. पर उनका मन भारत पर केंद्रित था. भारत की गरीबी के अलावा भारतीय कारोबारी प्रतिभा और भारतीय मेधा के बेहतर इस्तेमाल के वे कायल थे.
पता नहीं ग्लोबल शदावली में हमारा गुरू शद कब प्रवेश कर गया, पर इसे लोकप्रिय बनाने में कोयंबटूर कृष्णराव प्रह्‌लाद का बड़ा योगदान है. कॉरपोरेट स्ट्रेटेजी और बिजनेस मैनेजमेंट के जिन गिने-चुने भारतीय विशेषज्ञों को दुनिया जानती है उनमें प्रह्‌लाद का नाम सबसे ऊपर था. पिछले साल जब थिंकर्स-भ्० लिस्ट में उन्हें वर्ल्ड्‌स मोस्ट इनलूएंशियल थिंकर कहा गया, तो वह हमारे लिए गर्व की बात थी. प्रह्लाद का महत्व सिर्फ इस बात से नहीं है कि वे कारोबारी दुनिया को कमाई का बेहतर रास्ता बताते थे. बल्कि इस बात से है कि उन्होंने हमारी जमीनी सच्चाई, यानी गरीबी के निराकरण का वह रास्ता कारोबारी दुनिया को दिखाया, जो दोनों के फायदे का था. प्रह्लाद ने इस बात को रेखांकित किया था कि आने वाला वत वायरलेस केंद्रित होगा, पीसी केंद्रित नहीं. और यह भी कि मोबाइल कंपनियों को सस्ते हैंडसेट बनाने की दिशा में जुट जाना चाहिए. यह बात तब कही गई थी जब मोबाइल फोन अमीरों का शौक पूरा करता था. आज वह गरीबों का मददगार है.
पिछले कुछ साल में देश के बिजनेस हाउसों ने बॉटम ऑफ पिरेमिड यानी सबसे निचले तबके के ग्राहकों के बारे में सोचना शुरू किया है. मल्टीनेशनल कंपनियां मुंबई के डबेवालों, कस्बों और गांवों में फेरी लगाने वालों और साप्ताहिक बाजारों को स्टडी करने लगी हैं. रिवर्स इनोवेशन शद भारत जैसे बाजारों से निकला है. शैंपू से लेकर टोमेटो कैचप तक सैशे में आ गए और बेहद सफल हुए. यह सब सोचने वाला दिमाग शुद्ध भारतीय था. तमिलनाडू के एक माधव ब्राह्मण परिवार में जन्मे सीके प्रह्‌लाद के पिता जज थे, साथ ही संस्कृत के विद्वान भी. मैनेजमेंट के छात्र तो वे बाद में बने. उत्सुकता और समाधान उनके दिमाग में शुरू से थे. उन्होंने शुरूआती चार साल में यूनियन कार्बाइड की जो नौकरी की उसने उनके मन में झंकार पैदा कर दी. आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ने तो वे इसके बाद गए. हारवर्ड में पढ़ते समय उनकी एप्रोच कारोबार के व्यापक अर्थ को देखती थी. सिर्फ इसी बात ने उन्हें दूसरों से अलग बनाया. प्रह्‌लाद के मैनेजमेंट के तमाम सूत्र तकनीकीहैं, जिन्हें सामान्य दृष्टि से समझना मुश्किल होगा, पर बहुत सी बातें आसानी से समझ में आती हैं. मसलन ख्००ब् की उनकी पुस्तक द फारच्यून एट द बॉटम ऑफ द पिरेमिड-इरेडिकेटिंग पॉवर्टी थू्र प्र्रॉफिट्‌स में दुनिया के कारोबारियों का ध्यान गरीब उपभोताओं की ओर खींचा गया था. हालांकि यह किताब गरीबी हटाने के तरीकों पर केंद्रित नहीं थी, पर गरीब उसके केंद्र में था. सन्‌ ख्००त्त् में एसएस कृष्णा के साथ मिलकर उन्होंने एक और किताब लिखी-द न्यू एज ऑफ इनोवेशन. मूलतः यह किताब कारोबार की प्रोसेस स्थानीय उपभोता की जरूरत के अनुसार बदलने की जरूरत पर केंद्रित है. प्रह्‌लाद ने लॉगर्स के वर्ल्ड इनोवेशन फोरम में इस बात पर जोर दिया कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि मैं कितना इनवेस्ट कर सकता हूं, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि मैं कितनी जल्दी सीチा सकता हूं. उनका जोर इस बात पर है कि भविष्य यानी ख्०क्भ् या ख्०ख्० को देखने की कोशिश कीजिए. आप उसकी परिकल्पना कर लें तो फिर वापस वर्तमान में आएं और उसी दायरे में काम कीजिए. उनका सारा जोर इनोवेशन पर है. इनोवेशन ही प्रोफिटेबल है. प्रह्‌लाद को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली. वे उसे एंजॉय कर सकते थे. पर उनका मन भारत पर केंद्रित था. भारत की गरीबी के अलावा भारतीय कारोबारी प्रतिभा और भारतीय मेधा के बेहतर इस्तेमाल के वे कायल थे. टाटा की नेनो कार एक तरह से प्रह्लाद दृष्टि की देन थी. उमीद है कि नेनो का कांसेप्ट ग्लोबल पैराडाइम बदल सकता है. असर औद्योगिक उत्पाद पहले तैयार होते हैं, फिर कीमत तय होती है. इसकी जगह पहले से तय करें कि पांच हजार का कप्यूटर बनाना है. या दो सौ का वॉटर फिल्टर बनाना है. इससे इनोवेशन का रास्ता खुलता है. रिवर्स इनोवेशन की जो अवधारणा इन दिनों काम कर रही है उसके पीछे आशय यही है कि पश्चिम के किसी उत्पाद को इनोवेशन के मार्फत काम और दाम दोनों में आकर्षक बनाकर मार्केट में उतार दिया जाए. इसे ग्लोबलाइजेशन, लोकलाइजेशन, लोकल इनोवेशन और फिर रिवर्स इनोवेशन की चेन के रूप में समझा जा सकता है. हमारे जैसे गरीब देशों के बाजार में उपभोता को सिर्फ माल नहीं चाहिए. खरीदी गई चीज खरीदार की इज्जत बढ़ाने वाली और उसकी तरकी में मददगार भी होनी चाहिए. पिछले कुछ साल में दुनिया काफी बदली है. भारत का उपभोता कितना ही गरीब हो, पहले की तुलना में ज्यादा जानकार और ग्लोबल है. ग्लोबल जानकारी के लिए आज विदेश यात्रा करने की जरूरत नहीं. काफी चीजें वायरलेस हो रही हैं. पता नहीं किसी दिन बिजली भी वायरलेस हो जाए, पर जो कुछ भी वायरलेस है उसने नशा बदल दिया है. प्रीपेड कारोबार ने मार्केट की शल बदल दी है. प्रह्लाद की धारणा थी कि भारत और चीन जैसे नए बाजार पिरेमिड के बॉटम की ताकत को साबित करेंगे. उन्हें लगता है कि आने वाले वत में उपभोता किसी उत्पाद का वैल्यू एडीशन भी करेगा यानी उसमें बदलाव करेगा. इसे वे को-क्रिएशन ऑफ वैल्यू कहते थे. तीसरे उन्हें लगता था कि आउटसोर्सिंग ने एक नया अर्थ धारण कर लिया है. अब काम को तेजी से और बेहतर कुशलता के साथ करने के लिए आउट सोर्सिंग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उपभोता के साथ संवाद ज्यादा होगा, उसका हस्तक्षेप ज्यादा होगा, बल्कि उसकी भूमिका ज्यादा होगी.
एक इंटरव्यू में प्रह्लाद ने लोट्रोनिस नाम की एक दवा का जिक्र किया था, जो पेट की तकलीफ में ली जाती है. करीब ढ़ाई लाख मरीजों ने दवा का इस्तेमाल कर लिया, तब अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग को लगा कि यह दवाई नुकसानदेह है, इस पर पाबंदी लगनी चाहिए. उस पर पाबंदी लगती उसके पहले ही जनता ने हस्तक्षेप करके कहा कि दवाई चलने दीजिए, योंकि उसके विकल्प में जो दवाइयां हैं उनका नुकसान और ज्यादा है. जनता के दबाव में दवाई जारी है. स्वास्थ्य विभाग, दवा कंपनी और उपभोता सबको दवा के खतरे मालूम हैं. इस कैलकुलेटेड रिस्क की एक व्यवस्था बन गई है. यह आने वाले कल की व्यवस्था को भी बताता है. एक मार्केटिंग गुरू के साथ-साथ यह उनके युगद्रष्टा होने का परिचायक है. यह बात ज्यादा बड़ी है. प्रह्लाद ने प्रजा नाम से अपनी एक संस्था भी बनाई जिसका उद्देश्य व्यवस्था की पारदर्शिता है. कंपनियों को चलाना व्यवस्था को चलाना है. राजव्यवस्था विचारक प्रह्लाद लंबे अरसे तक हमें रास्ता दिखाते रहेंगे.

2 comments:

  1. आपने इस पोस्ट के ज़रिये बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई.....!

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