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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Sunday, 5 September 2010

लम्हे खता करते हैं और सदियां सजा पाती हैं

देश अपनी आजादी की 64वीं वर्षगांठ मना रहा है। अंग्रेजों से मुक्ति के बाद देश ने विकास के क्षेत्र में अंगड़ाई ली है और आज विश्वशक्तियों के मुकाबले की स्थिति में आया है। इन 50-60 सालों में देश का राज-समाज बदला है। घर की वर्जनाओं को तोड़कर महिलाओं ने भी विभिन्न खित्तों में अपनी पहचान कायम की है। युवा शक्ति में नेतृत्व संभालने का माद्दा पैदा हुआ है और खाद्यान्न के मामले में देश आत्मनिर्भर हुआ है। भारत ने जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान के नारे को सार्थक सिद्ध करते हुए रक्षा, खाद्यान्न और विकास के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व तरक्की की है, उसे देखकर तीसरी दुनिया के देश भी दांतों तले उंगली दबाने को विवश हैं। हमारी मुद्रा को नई पहचान मिली है। हमारे अस्तित्व को दुनिया मानने लगी है और हमारी विरासत और संस्कृतियों के अनूठे संगम को पाश्चात्य सभ्यता से ओतप्रोत देश भी अपनाने लगे हैं। योग और शिक्षा के मामले में इस विश्वगुरू देश की ख्याति को आज पंख लगे हुए हैं तो कितनी ही कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने देश को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं। कितनी ही ममता सौदा और ममता खरब ने खेल को उसके मुकाम पर पहुंचाया है तो राजनीति के क्षेत्र में उतरकर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में वे पीछे नहीं रही हैं। लेकिन इन सब चीजों के बीच जो हमने खोया है, उसे पाने के लिए नई पीढिय़ों को जमाने लग जाएंगे। हमने सुना है जब बुजुर्ग कहा करते थे कि लम्हे खता करते हैं और सदियां सजा पाती हैं। आज भारत के साथ वही हो रहा है। भ्रष्टाचार और बढ़ती आबादी आज देश के लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर खड़े हो गए हैं। परिवार नियोजन के तमाम हरबे सिर्फ किताबी नजर आते हैं और जमीनी तौर पर इसके लिए पर्याप्त कार्य नहीं हो रहा। यह अलग बात है कि जागरूकता बढ़ी है और लोगों ने स्वत: ही कम बच्चों के सिद्धांत को अपनाया है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भ्रष्टाचार को देश ने एक तरह से जरूरी तौर पर ही स्वीकार कर लिया है। देश का युवा वर्ग जिस संस्कृति को अपना रहा है वह हमारी परंपरा, संस्कृति, संस्कार और विचारधारा से कोसों दूर है। हालात यह हैं कि इंसां से हुआ पशु पराजित, नंगेपन की होड़ में, दो कौड़ी का नेता बिकता पूरे ढ़ाई करोड़ में। कहीं तन ढकने को वस्त्र नहीं तो कहीं तन ढकने का शौक नहीं। पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग की संस्कृति ने हमारे क्षीर, मालपुवे के संस्कारों को तिरोहित करके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने की कुत्सित कोशिशें की तो देश के लोगों ने भी मिलावट के धंधे को शॉर्ट कट मेथड बना लिया। दवाइयां, खाद्य पदार्थ, मिर्च मसाले और यहां तक कि वनस्पति को भी दूषित करने की कोशिशें होने लगी। चिंताजनक और शर्मनाक यह है कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था इस तरफ तोताचश्मी तेवर अख्तियार किए हुए है। देशभक्तों के इस भारत ने उन तमाम ज्ञात-अज्ञात शहीदों को बिसरा दिया जिनके कारण देश को यह दिन नसीब हुए थे। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के हर नागरिक को यह प्रण लेना होगा कि आपसी भ्रातृृभाव और ईमानदारी के भारतीय सिद्धांत को बल प्रदान करते हुए देश की एकजुटता, सभ्यता, संस्कृति, परंपरा और सद्भाव को बचाने के लिए काम करें। तभी हमारा स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाने के प्रयास सार्थक गिने जाएंगे।

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