हरियाणा प्रदेश के एक छोर पर बसे सिरसा जिला की आध्यात्मिक विरासत और धर्म का खजाना देशभर में ख्यात है। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की त्रिवेणी कहलाने वाला यह शहर धनाढय़ लोगों का निवास स्थान है। धन-धान्य की कमी न होने के चलते ही यहां धर्म का प्रचार भी खूब फला-फूला और अनेक ऋषि-मुनियों और मनीषियों-महापुरुषों ने इस शहर को अपनी कर्मभूमि बनाया। सिरसा के संस्थापक कहलाने वाले श्री श्री 1008 बाबा सरसाईं नाथ की बात करें या फिर सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह मस्ताना शाह की, धर्म और अध्यात्म की गंगा यहां सदैव बहती रही है।
सिरसा में डेरा सच्चा सौदा, राधास्वामी सत्संग ब्यास का आश्रम, संत निरंकारी भवन के स्थापित आश्रम हैं वहीं पीर-फकीरों की अनेक दरगाहों और डेरों का यहां बाहुल्य है। बाबा श्योराम दास, बाबा बिहारी जी और बाबा तारा जी की यहां काफी मान्यता है और इन महापुरुषों का सान्निध्य प्राप्त करने वाले लोगों ने जीवन की सफलता के मार्ग भी तय किए हैं। बाबा तारा जी ने इस इलाके को अपनी तपोभूमि बनाया और अपना चोला बदलने के लिए हरि की भूमि हरिद्वार को चुना। साथ ही शिवरात्रि के दिन उनका देहावसान हुआ।
पंजाब एवं राजस्थान की सीमा के साथ लगते इस शहर की सभ्यता को अपने बीच समेटे हुए सिरसा के रानियां रोड पर ब्रह्मलीन हुए शिवभक्त सद्गुरू श्री बाबा तारा जी की लंबे समय तक तपोभूमि रही सिरसा को एक महान तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया गया है। बेशक इस तपोभूमि को कुटिया कहते हैं लेकिन इसके वैभवशाली इतिहास और गौरवान्वित करते नक्श को देखते हुए इसे आधुनिक और प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना कहा जा सकता है जिसके विकास के लिए प्रमुख समाजसेवी एवं हरियाणा सरकार में गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा व उनके अनुज गोविंद कांडा ने अथक प्रयास और मेहनत की है। उन्हीं की देखरेख में इस कुटिया में अहर्निश तेजी से विकास कार्य चल रहे हैं। कहना न होगा कि निकट भविष्य में यह कुटिया एक बहुत बड़े तीर्थ के रूप में अपना अस्तित्व कायम कर लेगी।
बाबा तारा कुटिया पर प्रतिदिन न केवल सिरसा बल्कि दूरदराज से हजारों श्रद्धालु आकर बाबा तारा की कुटिया पर शीश झुकाते हैं और मन्नतें मानते हैं। अब तक लाखों लोग इस कुटिया पर आ चुके हैं। बाबा तारा ने फाल्गुन माह की शिवरात्रि के दिन हिसार जिले के हांसी तहसील में पड़ते गांव पाली में श्रीचंद सैनी के घर जन्म लिया था। बाबा तारा की दो वर्ष की आयु में उनके माता-पिता स्वर्ग सिधार गए। इसके बाद उनका पालन पोषण उनकी बुआ व फूफा जी ने गांव रामनगरिया में किया। बचपन से ही बाबा तारा शिवभक्ति में लीन रहते थे।
जब उनकी अवस्था 15-16 वर्ष की थी तो परिजनों ने उनके विवाह की तैयारी की लेकिन तभी बाबा ने सांसारिक मोह त्याग दिया और सिरसा में सिद्ध बाबा बिहारी की सेवा करनी आरंभ की। उनके मार्गदर्शन में घोर तपस्या करते हुए बाबा बिहारी के आदेशानुसार उनके शिष्य सिद्ध बाबा श्योराम जी से नाम की दीक्षा ली। इसके बाद सिरसा छोड़ हिसार के घने जंगलों में घोर तपस्या की। इसी दौरान उनके सेवकों ने उनसे मिलकर सिरसा आने की प्रार्थना की। उनके प्रेमपूर्ण निवेदन को स्वीकारते हुए बाबा तारा ने रामनगरिया गांव के पास जंगल में कुटिया बनाकर इसे अपनी साधना, तप, शिवभक्ति और सद्कर्म से तपोभूमि में परिवर्तित कर दिया। ब्रह्मचारी संत के रूप में ख्यात हुए एकांतप्रिय बाबा तारा शिवभक्ति को अत्यधिक महत्व देते थे। रात्रिकाल में भी उनकी कुटिया में कोई सेवक नहीं रहता था क्योंकि उनकी धारणा थी कि शिवभक्तों की रक्षा भगवान शिव स्वयं करते हैं। बाबा की सादगी का परिचय इसी से मिलता है कि वे अपना निर्वाह 24 घंटे में मात्र एक समय रोटी व लाल मिर्च की चटनी से ही करते थे। लंबे समय तक मौन धारण करते हुए बाबा ने 12 वर्ष तक बिना अन्न के शिव की तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की। जिस भी श्रद्धालु ने इस तपोभूमि को नमन किया उसका जीवन सफल हो गया।
हर वर्ष फाल्गुन और सावन माह में शिवरात्रि पर्व के अवसर पर बाबा तारा जी शिवधाम, नीलकंठ, महादेव, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नीलधारा, रामेश्वरम, अमरनाथ, उज्जैन के अतिरिक्त भगवान शिव के पूजनीय स्थलों ज्योतिर्लिंगों की उपमा के साथ कुछ सेवकों के साथ यात्रा करते थे। वर्ष 2003 को 20 जुलाई के दिन शिवरात्रि के पर्व पर बाबा तारा अपने सेवकों सहित हरिद्वार पहुंचे जहां 26 जुलाई को गंगाघाट आश्रम में परमानंद आश्रम में गए। अपने सेवकों को भोजन करवाने के बाद शिवरात्रि की पावन बेला शुरू होते ही वे अपने कमरे से बाहर आकर गंगाघाट पहुंच गए और वहां स्थापित शिवालय के निकट उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। कुटिया के प्रमुख सेवक गोपाल कांडा कहते हैं कि वे सब यह देखकर चकित थे कि इस महान संत ने शिव में अंतर्लीन होने के लिए पावन मुहूर्त व पावन गंगा घाट का चयन किया। बाबा की कुटिया में 71 फुट ऊंचा शिवालय आकर्षण का केंद्र है। शिवलिंग के आकार में ही बनाए गए इस शिवालय की सीढिय़ां धोलपुर पत्थर से बनी हैं जिन पर की गई नक्काशी देखने लायक है। शिवालय में दाखिल होते ही कारीगरों द्वारा तराशकर लगाए गए शीशे व शिवालय में चांदी पर की गई मीनाकारी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
शिवालय में स्थापित किया गया शिवलिंग महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन से लाया गया है। इस शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए काशी से लाए गए विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित घनश्याम शर्मा की देखरेख में प्रतिदिन रूद्राभिषेक, शिवमहिमा स्तोत्र, शिव तांडव, शुक्ल यजुर्वेद का पाठ, दुर्गा सप्तशती व आरती की जाती है। शिवालय व नंदी जी के सामने निर्मित की गई मनमोहक भगवान शिव की प्रतिमा अपने आपमें ऐतिहासिक है। 35 फुट लंबे व 35 फुट चौड़े प्लेटफार्म पर स्थापित 108 फुट ऊंची शिव प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा है। मात्र सवा साल में 600 टन की इस प्रतिमा का निर्माण पिलानी के प्रसिद्ध मूर्तिकार मातूराम द्वारा किया गया। इस पर तांबे की पॉलिश की गई व इस मूर्ति के तिलक, नाभि, कुंडल, कड़ों को सोने की चादर से बनाया गया है। प्रतिमा की जटों से गंगा अवतरण का दृश्य इसके रूप को चार चांद लगाता प्रतीत होता है। सायंकाल को विद्युत किरणों व उषाकाल के सूर्योदय के समय गंगा अवतरण से होने वाली जलधारा देखने योग्य है। इस प्रतिमा के ठीक सामने इटली की तकनीक के सहयोग से दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा ऊं नमो शिवाय: शब्द पर आधारित फव्वारा दूरदराज तक के लोगों के लिए एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत करता है।
बाबा तारा की कुटिया परिसर में 5 हजार फुट लंबी तैयार की गई कृत्रिम गुफा के मुख पर हनुमान जी विराजमान किए गए हैं। गुफा के भीतर जंगल के प्राकृतिक दृश्यों के बीच ब्रह्मलीन बाबा तारा जी के जीवन से संबंधित झांकियां बनाई गई हैं। इसके अलावा गुफा के भीतर बाबा अमरनाथ के हिम शिवलिंग, कैलाश पर्वत, 12 ज्योतिर्लिंग आदि के कृत्रिम दृश्य व गुफा के दूसरे छोर के बाहर समुद्र मंथन का दृश्य यहां आने वाले पर्यटकों को आत्मविभोर कर देते हैं। बाबा तारा की कुटिया लगभग 20 एकड़ में विकसित की गई है जिसमें श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु स्वचालित 140 किलोवाट व 125 किलोवाट के 5 जनरेट स्थापित किए गए हैं। कुटिया में लोगों के इलाज के लिए एक नि:शुल्क आयुर्वेदिक चिकित्सालय का भी संचालन किया जा रहा है जहां उच्च स्तर की कंपनियों की दवाइयों से जरूरतमंद मरीजों का उपचार किया जाता है। कुटिया प्रांगण में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक विशाल शैड का निर्माण भी किया गया है। कुटिया समिति द्वारा शहर के विभिन्न चौराहों से मात्र एक घंटे के अंतराल में वाहन सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है।
कुटिया में आने वाले श्रद्धालुओं को नाममात्र कीमत पर देसी घी से निर्मित दोपहर भोज की व्यवस्था भी की जाती है। भोजन के लिए वातानुकूलित हट्स भी स्थापित किए गए हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के झूलों की भी व्यवस्था है। बाबा तारा कुटिया में अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर की भी शुरूआत की गई है जिसमें हजारों लोगों की आंखों का उपचार व ऑप्रेशन किया जा चुका है। बाबा तारा के तीसरे निर्वाण दिवस के अवसर पर कुटिया में अतिरूद्र महायज्ञ 251 वेदपाठियों द्वारा किया गया था जो रावण के काल के उपरांत पहली बार हुआ। कुटिया में देशभर के ख्याति प्राप्त साधु महात्मा भी लगातार आध्यात्मिक गंगा बहाने के लिए समय-समय पर आते रहते हैं। इसके अलावा अनेक फिल्मी हस्तियां व गायकों ने इस तपोभूमि पर अपनी कला का जलवा बिखेरा है। दिन प्रतिदिन इस कुटिया में विकास कार्य तेजी से करवाए जा रहे हैं जिससे आने वाले एकाध वर्ष में ही कुटिया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करेगी।
सिरसा में डेरा सच्चा सौदा, राधास्वामी सत्संग ब्यास का आश्रम, संत निरंकारी भवन के स्थापित आश्रम हैं वहीं पीर-फकीरों की अनेक दरगाहों और डेरों का यहां बाहुल्य है। बाबा श्योराम दास, बाबा बिहारी जी और बाबा तारा जी की यहां काफी मान्यता है और इन महापुरुषों का सान्निध्य प्राप्त करने वाले लोगों ने जीवन की सफलता के मार्ग भी तय किए हैं। बाबा तारा जी ने इस इलाके को अपनी तपोभूमि बनाया और अपना चोला बदलने के लिए हरि की भूमि हरिद्वार को चुना। साथ ही शिवरात्रि के दिन उनका देहावसान हुआ।
पंजाब एवं राजस्थान की सीमा के साथ लगते इस शहर की सभ्यता को अपने बीच समेटे हुए सिरसा के रानियां रोड पर ब्रह्मलीन हुए शिवभक्त सद्गुरू श्री बाबा तारा जी की लंबे समय तक तपोभूमि रही सिरसा को एक महान तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया गया है। बेशक इस तपोभूमि को कुटिया कहते हैं लेकिन इसके वैभवशाली इतिहास और गौरवान्वित करते नक्श को देखते हुए इसे आधुनिक और प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना कहा जा सकता है जिसके विकास के लिए प्रमुख समाजसेवी एवं हरियाणा सरकार में गृह राज्यमंत्री गोपाल कांडा व उनके अनुज गोविंद कांडा ने अथक प्रयास और मेहनत की है। उन्हीं की देखरेख में इस कुटिया में अहर्निश तेजी से विकास कार्य चल रहे हैं। कहना न होगा कि निकट भविष्य में यह कुटिया एक बहुत बड़े तीर्थ के रूप में अपना अस्तित्व कायम कर लेगी।
बाबा तारा कुटिया पर प्रतिदिन न केवल सिरसा बल्कि दूरदराज से हजारों श्रद्धालु आकर बाबा तारा की कुटिया पर शीश झुकाते हैं और मन्नतें मानते हैं। अब तक लाखों लोग इस कुटिया पर आ चुके हैं। बाबा तारा ने फाल्गुन माह की शिवरात्रि के दिन हिसार जिले के हांसी तहसील में पड़ते गांव पाली में श्रीचंद सैनी के घर जन्म लिया था। बाबा तारा की दो वर्ष की आयु में उनके माता-पिता स्वर्ग सिधार गए। इसके बाद उनका पालन पोषण उनकी बुआ व फूफा जी ने गांव रामनगरिया में किया। बचपन से ही बाबा तारा शिवभक्ति में लीन रहते थे।
जब उनकी अवस्था 15-16 वर्ष की थी तो परिजनों ने उनके विवाह की तैयारी की लेकिन तभी बाबा ने सांसारिक मोह त्याग दिया और सिरसा में सिद्ध बाबा बिहारी की सेवा करनी आरंभ की। उनके मार्गदर्शन में घोर तपस्या करते हुए बाबा बिहारी के आदेशानुसार उनके शिष्य सिद्ध बाबा श्योराम जी से नाम की दीक्षा ली। इसके बाद सिरसा छोड़ हिसार के घने जंगलों में घोर तपस्या की। इसी दौरान उनके सेवकों ने उनसे मिलकर सिरसा आने की प्रार्थना की। उनके प्रेमपूर्ण निवेदन को स्वीकारते हुए बाबा तारा ने रामनगरिया गांव के पास जंगल में कुटिया बनाकर इसे अपनी साधना, तप, शिवभक्ति और सद्कर्म से तपोभूमि में परिवर्तित कर दिया। ब्रह्मचारी संत के रूप में ख्यात हुए एकांतप्रिय बाबा तारा शिवभक्ति को अत्यधिक महत्व देते थे। रात्रिकाल में भी उनकी कुटिया में कोई सेवक नहीं रहता था क्योंकि उनकी धारणा थी कि शिवभक्तों की रक्षा भगवान शिव स्वयं करते हैं। बाबा की सादगी का परिचय इसी से मिलता है कि वे अपना निर्वाह 24 घंटे में मात्र एक समय रोटी व लाल मिर्च की चटनी से ही करते थे। लंबे समय तक मौन धारण करते हुए बाबा ने 12 वर्ष तक बिना अन्न के शिव की तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की। जिस भी श्रद्धालु ने इस तपोभूमि को नमन किया उसका जीवन सफल हो गया।
हर वर्ष फाल्गुन और सावन माह में शिवरात्रि पर्व के अवसर पर बाबा तारा जी शिवधाम, नीलकंठ, महादेव, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नीलधारा, रामेश्वरम, अमरनाथ, उज्जैन के अतिरिक्त भगवान शिव के पूजनीय स्थलों ज्योतिर्लिंगों की उपमा के साथ कुछ सेवकों के साथ यात्रा करते थे। वर्ष 2003 को 20 जुलाई के दिन शिवरात्रि के पर्व पर बाबा तारा अपने सेवकों सहित हरिद्वार पहुंचे जहां 26 जुलाई को गंगाघाट आश्रम में परमानंद आश्रम में गए। अपने सेवकों को भोजन करवाने के बाद शिवरात्रि की पावन बेला शुरू होते ही वे अपने कमरे से बाहर आकर गंगाघाट पहुंच गए और वहां स्थापित शिवालय के निकट उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। कुटिया के प्रमुख सेवक गोपाल कांडा कहते हैं कि वे सब यह देखकर चकित थे कि इस महान संत ने शिव में अंतर्लीन होने के लिए पावन मुहूर्त व पावन गंगा घाट का चयन किया। बाबा की कुटिया में 71 फुट ऊंचा शिवालय आकर्षण का केंद्र है। शिवलिंग के आकार में ही बनाए गए इस शिवालय की सीढिय़ां धोलपुर पत्थर से बनी हैं जिन पर की गई नक्काशी देखने लायक है। शिवालय में दाखिल होते ही कारीगरों द्वारा तराशकर लगाए गए शीशे व शिवालय में चांदी पर की गई मीनाकारी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
शिवालय में स्थापित किया गया शिवलिंग महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन से लाया गया है। इस शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए काशी से लाए गए विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित घनश्याम शर्मा की देखरेख में प्रतिदिन रूद्राभिषेक, शिवमहिमा स्तोत्र, शिव तांडव, शुक्ल यजुर्वेद का पाठ, दुर्गा सप्तशती व आरती की जाती है। शिवालय व नंदी जी के सामने निर्मित की गई मनमोहक भगवान शिव की प्रतिमा अपने आपमें ऐतिहासिक है। 35 फुट लंबे व 35 फुट चौड़े प्लेटफार्म पर स्थापित 108 फुट ऊंची शिव प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा है। मात्र सवा साल में 600 टन की इस प्रतिमा का निर्माण पिलानी के प्रसिद्ध मूर्तिकार मातूराम द्वारा किया गया। इस पर तांबे की पॉलिश की गई व इस मूर्ति के तिलक, नाभि, कुंडल, कड़ों को सोने की चादर से बनाया गया है। प्रतिमा की जटों से गंगा अवतरण का दृश्य इसके रूप को चार चांद लगाता प्रतीत होता है। सायंकाल को विद्युत किरणों व उषाकाल के सूर्योदय के समय गंगा अवतरण से होने वाली जलधारा देखने योग्य है। इस प्रतिमा के ठीक सामने इटली की तकनीक के सहयोग से दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा ऊं नमो शिवाय: शब्द पर आधारित फव्वारा दूरदराज तक के लोगों के लिए एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत करता है।
बाबा तारा की कुटिया परिसर में 5 हजार फुट लंबी तैयार की गई कृत्रिम गुफा के मुख पर हनुमान जी विराजमान किए गए हैं। गुफा के भीतर जंगल के प्राकृतिक दृश्यों के बीच ब्रह्मलीन बाबा तारा जी के जीवन से संबंधित झांकियां बनाई गई हैं। इसके अलावा गुफा के भीतर बाबा अमरनाथ के हिम शिवलिंग, कैलाश पर्वत, 12 ज्योतिर्लिंग आदि के कृत्रिम दृश्य व गुफा के दूसरे छोर के बाहर समुद्र मंथन का दृश्य यहां आने वाले पर्यटकों को आत्मविभोर कर देते हैं। बाबा तारा की कुटिया लगभग 20 एकड़ में विकसित की गई है जिसमें श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु स्वचालित 140 किलोवाट व 125 किलोवाट के 5 जनरेट स्थापित किए गए हैं। कुटिया में लोगों के इलाज के लिए एक नि:शुल्क आयुर्वेदिक चिकित्सालय का भी संचालन किया जा रहा है जहां उच्च स्तर की कंपनियों की दवाइयों से जरूरतमंद मरीजों का उपचार किया जाता है। कुटिया प्रांगण में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए एक विशाल शैड का निर्माण भी किया गया है। कुटिया समिति द्वारा शहर के विभिन्न चौराहों से मात्र एक घंटे के अंतराल में वाहन सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है।
कुटिया में आने वाले श्रद्धालुओं को नाममात्र कीमत पर देसी घी से निर्मित दोपहर भोज की व्यवस्था भी की जाती है। भोजन के लिए वातानुकूलित हट्स भी स्थापित किए गए हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के झूलों की भी व्यवस्था है। बाबा तारा कुटिया में अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर की भी शुरूआत की गई है जिसमें हजारों लोगों की आंखों का उपचार व ऑप्रेशन किया जा चुका है। बाबा तारा के तीसरे निर्वाण दिवस के अवसर पर कुटिया में अतिरूद्र महायज्ञ 251 वेदपाठियों द्वारा किया गया था जो रावण के काल के उपरांत पहली बार हुआ। कुटिया में देशभर के ख्याति प्राप्त साधु महात्मा भी लगातार आध्यात्मिक गंगा बहाने के लिए समय-समय पर आते रहते हैं। इसके अलावा अनेक फिल्मी हस्तियां व गायकों ने इस तपोभूमि पर अपनी कला का जलवा बिखेरा है। दिन प्रतिदिन इस कुटिया में विकास कार्य तेजी से करवाए जा रहे हैं जिससे आने वाले एकाध वर्ष में ही कुटिया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करेगी।
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