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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Thursday, 27 October 2011

जब हादसे सेलिब्रेट होने लगें...


राजन प्रकाश 

09/11 के उस काले दिन के 10 साल पूरे हो चुके हैं. दर्द को आज भी याद किया जा रहा है. घटना के चश्मदीद तलाशे जा रहे हैं, जो एक बार फिर बता सकें कि उस दिन उन्होंने कैसा महसूस किया था. 10 साल से लगातार वे यही बताते आ रहे हैं. टेलीविजन पर सक्रियता कुछ ज्यादा होती है इसलिए चर्चा में तरह-तरह का तड़का लगाया जाता है.
एक प्रमुख अंग्रेजी खबरिया चैनल लगातार एक्सक्लूसिव वीडियो चला रहा है. 'नैवर सीन बिफोरÓ की टैगलाइन के साथ. 10 साल के बाद भी हम एक्सक्लूसिव चीजें तलाश लाते हैं. सुनकर गर्व होता है. लेकिन यह सोचकर मिजाज थोड़ा खिन्न हो जाता है कि अब हम भयावह हादसों में बाजार तलाश रहे हैं. उन्हें सेलिब्रेट कर रहे हैं. हम कितने संवेदनहीन होते जा रहे हैं. अपने मन से 10 साल पुराना का एक बोझ उतारने का आज शायद सही अवसर है.
9/11 में हादसे के दौरान मैं पटना में रहा करता था. हमारे पास टीवी नहीं था. होता भी तो क्या? बिजली अपनी मर्जी से आती-जाती थी. इसी बीच मेरा रूममेट बदहवास आया और बताने लगा कि अमेरिका पर हमला हो गया है. वह मुझे समझा रहा कि कैसे एक जहाज आया और एक बिल्डिंग में टकरा गया. पलक झपकते 50 हजार लोग मर गए. फिर एक दूसरा जहाज टकराया और कई सौ लोग मर गए. उसकी ये एक्सक्लूसिव खबरें मेरा दिमाग खराब कर रही थीं. मैं ऊब चुका था. झल्लाकर मैंने कहा, 'चलो बहुत हुआ अमेरिकी वर्णन, बर्तन साफ करो. खाना बनाया जाए, हमला अमेरिका में हुआ है. पटना में नहीं
उसे मुझसे इस बात की अपेक्षा न थी. मैं उसकी नजर में सामान्य ज्ञान में बहुत रूचि लेता था. उसने सोचा था कि इस खबर से वो मुझे हैरान कर देगा, लेकिन मैं तो बर्तन साफ  करने की बात कर रहा था. उसने मुझे यूं घूरा कि कि जैसे उसके पास कोई जहाज होता तो वह मुझसे टकरा देता. मुझे भी गलती का अहसास हुआ. मैंने मामले को संभालते हुए कहा कि तुमने शायद खबर ठीक से नहीं देखी होगी. एक जहाज में 50 हजार लोग कहां से आ गए. और वह अमेरिका है. वहां एक बिल्डिंग में 50 हजार लोग नहीं होते दोस्त. हालांकि उसे भी मेरी बात तार्किक लगी लेकिन एक्सक्लूसिव जानकारी का फैक्टर उसे पीछे हटने से रोक रहा था. तय हुआ कि आज खाना नहीं बनेगा. हम किसी ऐसे होटल में चलकर खाएंगे जहां जनरेटर हो ताकि टीवी पर सबकुछ देखा जा सके. हम एक अच्छे रेस्त्रां में पहुंचे. अच्छा खाना खाया. ‍यादा देर तक खबरें देखने के लिए काफी देर तक डटे रहे. अंत में खाने का बिल भी उसी ने दिया क्योंकि अपनी एक्सक्लूसिव खबर को सही साबित करने की गरज उसे थी, मुझे नहीं. 
घटना के करीब आठ साल बाद, एक टीवी चैनल पर मैं मुंबई हमलों के एक साल पूरे होने पर प्रसारित होने वाले विशेष कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर रहा था. एक्सक्लूसिव कार्यक्रम क्या हो सकते हैं इस पर मुंबई और दूसरे प्रदेशों के रिपोर्टरों से जानकारी मांग रहा था. सारे रिपोर्टर यह बता रहे थे कि वे एक्सक्लूसिव चीजें देंगे. हालांकि मैं जानता था कि वह खबर हर चैनल पर आएगी. बेस्ट वीओ आर्टिस्ट, बेस्ट वीडियो एडिटर और पैकेंजिग के बेस्ट लोगों के साथ 25 नवंबर को पूरी रात हम अपनी ओर से बेस्ट पैकेज बनाते रहे. मैंने पहले से कुछ कविताएं चुनके रखी थीं जिन्हें मैंने हर पैकेज स्क्रिप्ट में डाला. दो दिन की मेहनत के बाद 20 से ज्यादा अच्छे पैकेज तैयार हुए. एंकर को समझाया गया कि उनके चेहरे पर भी वैसे भाव आने चाहिएं जिस तरह की चीज पैकेज में हों. टीम ने मिलकर अच्छा काम किया. रात्रि जागरण सफल रहा.
अगली सुबह से जब कार्यक्रम प्रसारित होने शुरू हुए तो साथियों की तारीफ  मिलने लगी. चैनल हेड अपनी कुर्सी से उठे. मेरे कंधे पर हाथ रखकर न्यूज रूम में ले गए. तारीफ  हुई. तालियां बजीं. फिर अच्छा कार्यक्रम तैयार करने के लिए एक छोटी सी पार्टी भी मिली. एक आतंकी हमला फिर मेरे लिए अपने साथ एक सेलिब्रेशन लेकर आया था. भौतिकतावाद की पराकाष्ठा शायद इसे ही कहते हैं. बहरहाल मन का बोझ थोड़ा कम हुआ है.
(साभार : द संडे इंडियन से लिया गया)

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