रजनीश शर्मा
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन ने सूबे की सियासी रंगत इस कदर बदली है कि राजनीतिक सूरमाओं के चेहरे का रंग भविष्य की चिंता में फीका पडने लगा है. तमाम बड़े नेताओं के विधानसभा क्षेत्र या तो खत्म हो गए हैं या फिर उन्हें आरक्षित घोषित कर दिया गया है. परिसीमन की चपेट में आने वालों में वर्तमान मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल के साथ-साथ तीन कैबिनेट मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और नेता प्रतिपक्ष विद्या स्टोक्स भी शामिल हैं.
पुनर्सीमांकन के बाद दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा व कांग्रेस के समक्ष एक साथ कई चुनौतियां पहाड़ की तरह खड़ी हो गई हैं. हालांकि विधानसभा चुनाव करीब सवा साल बाद होने हैं, पर बड़े नेताओं ने जहां खुद के लिए सुरक्षित रणक्षेत्र तलाशना शुरू कर दिया है, वहीं उन्हेें अपने सिपहसालारों के लिए सुरक्षित 'चौकीÓ की भी चिंता सता रही है. इस चुनौती से उबरने के क्रम में उन्हें कहीं टिकट के दावेदारों में से कुछ को पुचकारना पड़ेगा, तो कहीं लताड़ से काम लेना होगा. ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बार विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण के दौरान हिमाचल प्रदेश में सियासी भू-डोल कई नेताओं के अरमान ध्वस्त कर देगा.
किसके पास क्या विकल्प है और कौन-सा दल किस तरह की मुसीबत से घिर सकता है, इस पर चर्चा से पहले हिमाचल की राजनीतिक तस्वीर को समझ लेना जरूरी है. गठन के समय से ही हिमाचल में कांग्रेस व भाजपा का प्रभाव रहा है. सूबे में कुल 68 विधानसभा क्षेत्र हैं. मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के 23 विधायक हैं तो 41 विधायकों के साथ भाजपा सूबे पर राज कर रही है. ठियोग के विधायक राकेश वर्मा, करसोग के विधायक हीरालाल व नूरपुर के विधायक राकेश पठानिया भाजपा के एसोसिएट सदस्य हैं तो कांगड़ा के विधायक संजय चौधरी बसपा के चुनाव चिन्ह पर जीतने के बाद भाजपा में शामिल हो गए. अब जरा एक नजर पुनर्सीमांकन से पहले व बाद के हालात पर. मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल हमीरपुर जिले के बमसन विधानसक्षा क्षेत्र से चुनाव लड़ते आए हैं. यह चुनाव क्षेत्र अब अस्तित्व में नहीं है. परिसीमन के बाद इसका हिस्सा मेवा, सुजानपुर और हमीरपुर में चला गया. ऐसे में धूमल के लिए सुरक्षित सीट की तलाश बहुत मुश्किल नहीं, तो आसान भी नहीं है. अगर वह हमीरपुर को चुनते हैं तो वहां से पहले ही भाजपा की उर्मिल ठाकुर विधायक हैं. फिर हमीरपुर में उन्हें भाजपा के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय ठाकुर जगदेव चंद के परिवार के राजनीतिक प्रभाव से भी लोहा लेना होगा. सबसे बड़ी बात यह कि जगदेव चंद ठाकुर के बेटे नरेंद्र ठाकुर फिलहाल कांग्रेस में हैं. अगर मुख्यमंत्री धूमल खुद के लिए नए बने सुजनापुर क्षेत्र को विकल्प के तौर पर लेते हैं तो उन्हें खास परेशानी नहीं होगी, क्योंकि सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र में उनके पूर्व के क्षेत्र बमसन का काफी इलाका शामिल है. वैसे सही तो यह है कि पूरे हमीरपुर जिले को ही भाजपा का गढ़ माना जाता है.
सिंचाई व जनस्वास्थ्य मंत्री रविंद्र सिंह रवि का क्षेत्र थुरल भी खत्म हो गया है. इसे ज्वालामुखी, पालमपुर व सुलह विधानसभा क्षेत्रों में मिला दिया गया है. सोलन से चुनाव लड़ते आए राजीव बिंदल का चुनावी क्षेत्र आरक्षित हो गया है. रवि और बिंदल दोनों ही मुख्यमंत्री धूमल के खास सिपाही माने जाते हैं. इनके अलावा खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग के मंत्री रमेश धवाला के चुनाव क्षेत्र ज्वालामुखी का कुछ हिस्सा नए बने देहरा विधानसभा क्षेत्र में चला गया है. पहले इसे परागपुर विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. भले ही खुद के लिए चुनाव क्षेत्र तलाशना धूमल के लिए परेशानी की बात न हो, पर रवि और बिंदल के सामने तो परेशानी आने ही वाली है. रवि ज्वालामुखी पर नजरें गड़ाए हैं, जबकि वहां भाजपा के रमेश धवाला किसी भी कीमत पर अपने विधानसभा क्षेत्र को खोना नहीं चाहते. थुरल से लगातार चार बार चुनाव जीतने वाले रवि के समर्र्थक दलील दे रहे हैं कि थुरल का कुछ हिस्सा चूंकि ज्वालामुखी में चला गया है, सो वहां से चुनाव लडऩा उनका हक बनता है. यह मुद्दा अभी से पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बनने लगा है. रमेश धवाला ज्वालामुखी में किसी की दखलंदाजी सहन नहीं करेंगे. फिर धवाला शांता कुमार समर्थक हैं और रवि मुख्यमंत्री धूमल के खास. ऐसे में निकट भविष्य में यहां टिकट की लड़ाई चरम पर रहेगी.
सोलन सीट के आरक्षित होने से स्वास्थ्य मंत्री बिंदल के समक्ष संकट खड़ा हो गया है. अगर उन्हें कोई सुरक्षित सीट नहीं मिलती है तो हिमाचल में उनकी सियासी सेहत गिर सकती है. उनके पास फिर संगठन में जाने का ही रास्ता बचेगा. समीकरण तो खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रमेश धवाला के विधानसभा क्षेत्र ज्वालामुखी के भी बदले हैं, लेकिन अन्य नेताओं के मुकाबले वह 'कंफर्ट जोनÓ में हैं. उनके क्षेत्र का कुछ हिस्सा नए बने देहरा विधानसभा क्षेत्र में गया है. भाजपा प्रवक्ता गणेश दत्त कहते हैं, 'पुनर्सीमांकन के बाद नए राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा को किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी. पार्टी आपसी सहमति से टिकटों का बंटवारा करेगी. मतभेदों को पार्टी मंच पर ही सुलझा लिया जाएगा.Ó परिसीमन से अगर भाजपा असहज हुई है, तो कांग्रेस के लिए भी परेशानियां कम नहीं हैं. सूबे में कांग्रेस के स्तंभ माने जाने वाले वीरभद्र सिंह रोहडू़ से चुनाव लड़ते आए हैं. रोहड़ू सीट अब आरक्षित हो गई है. वैसे तो वीरभद्र सिंह का गृह क्षेत्र रामपुर है, लेकिन वह सीट पहले से ही आरक्षित है. पुनर्सीमांकन से भी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ा है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वीरभद्र सिंह के पास नए अस्तित्व में आए विधानसभा क्षेत्र शिमला (ग्रामीण) से चुनाव लडऩे का विकल्प खुला है. कसुपटी विधानसभा क्षेत्र खत्म होने के बाद यह नया क्षेत्र बना है. कसुपटी पहले आरक्षित सीट थी, लेकिन शिमला (ग्रामीण) में परिणत होने बाद यह सीट अनारक्षित हो गई. कसुपटी से दो बार जीते कांग्रेस के विधायक सोहन लाल को वीरभद्र सिंह का खास समर्थक माना जाता है. इसके अलावा, वीरभद्र सिंह को अपने युवा समर्थक और बैजनाथ के विधायक सुधीर शर्मा को एडजस्ट करने की चिंता भी सता रही है. बैजनाथ सीट अब आरक्षित हो गई है. वीरभद्र सिंह चाहते हैं कि सुधीर शर्मा को पालमपुर से चुनाव लड़वाया जाए, लेकिन वहां पहले से ही कांग्रेस के बुजुर्ग नेता बीबीएल बुटेल जमे हुए हैं. विधायक सुधीर शर्मा के पिता व पूर्व मंत्री स्वर्गीय पंडित संतराम, वीरभद्र सिंह के साथ हर मुसीबत में खड़े रहे. सुधीर शर्मा उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. जाहिर है, वीरभद्र सिंह को उन्हें उपकृत करना ही होगा.
यदि कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष विद्या स्टोक्स की बात की जाए, तो उनके विधानसभा क्षेत्र सुन्नी कुमार सैन का अस्तित्व खत्म हो गया है. उनके पास ठियोग से चुनाव लडऩे का विकल्प खुला हुआ है. उन्होंने तो बाकायदा इस आशय की घोषणा भी कर दी है. स्टोक्स के प्रभाव वाला कुछ इलाका सुन्नी कुमार सैन से निकलकर शिमला (ग्रामीण) में चला गया है. ठियोग के वर्तमान विधायक व भाजपा के एसोसिएट सदस्य राकेश वर्मा भी यहीं से चुनाव मैदान में उतरेंगे. राकेश वर्मा के प्रभाव वाले बलसन इलाके का कुछ हिस्सा चौपाल विधानसभा क्षेत्र में चला गया है. राकेश वर्मा परेशान हैं, क्योंकि चौपाल से चुनाव लडऩा उनके लिए व्यावहारिक नहीं होगा. तय है कि ठियोग विधानसभा क्षेत्र में आगामी चुनावी जंग बहुत रोचक होगी. कांग्रेस अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर कहते हैं, 'पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता आगामी चुनाव की रणनीति मिल कर तय करेंगे.
ऐसा नहीं कि परिसीमन के बाद सूबे के सभी नेता परेशान हैं. ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है जो चैन की बंसी बजा रहे हैं. जोगेंद्र नगर से चुनाव लड़ते आए वर्तमान लोक निर्माण मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर को परिसीमन से कोई फर्क नहीं पड़ा है. यही स्थिति परिवहन मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की भी है. उनका अपने चुनाव क्षेत्र धर्मपुर में इस कदर प्रभाव है कि वह पांच बार अलग-अलग चुनाव चिन्ह पर विजयी हुए हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर भी सुरक्षित हैं.
अलबत्ता कांग्रेस के पूर्व मंत्री और ऊना जिले के गगरेट से चुनाव लड़ते आए कुलदीप कुमार का चुनाव क्षेत्र अनारक्षित हो गया है. ऐसे में वह दौड़ से बाहर हो गए हैं. यही हाल चिंतपूर्णी विधानसभा क्षेत्र का है. यह सीट आरक्षित हो गई है. यहां से इस समय कांग्रेस के राकेश कालिया विधायक हैं. थोड़ी परेशानी हमीरपुर जिले की नादौन सीट से कांग्रेस के विधायक सुखविंद्र सिंह सुक्खू को भी होगी. उनके क्षेत्र के दर्जन भर पोलिंग बूथ अलग हो गए हैं.
पुनर्सीमांकन के बाद हिमाचल के सबसे बड़े जिले कांगड़ा से एक सीट कम हुई है. यहां कुल 16 सीटें थीं, पर अब 15 ही रह गई हैं. कांगड़ा जिले से थुरल विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म हुआ है. कुल्लू जिले में मनाली के तौर पर एक नई सीट बढ़ी है. कुल्लू में अब चार सीटें हो गई हैं. हिमाचल की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. एमपीएस राणा कहते हैं, 'पुनर्सीमांकन के बाद बदले हालात में दोनों दलों के सामने राजनीतिक चुनौतियां बढ़ गई हैं. जिन बड़े नेताओं के विधानसभा क्षेत्र खत्म या आरक्षित हुए हैं, उन्हें खुद के लिए चुनावी मैदान पर अनुकूल 'पिचÓ तलाशनी होगी. ऐसे में टिकट का बंटवारा दोनों दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा. आगामी चुनाव हिमाचल के राजनीतिक इतिहास की नई इबारत लिखेगा.Ó
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