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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Thursday, 27 October 2011

हांसी बुटाना विवाद का सच

विवाद का तो कहीं ओर-छोर ही नहीं दिखता!


जालंधर से अर्जुन शर्मा

हांसी-बुटाना नहर के करीब ही हरियाणा द्वारा निर्मित की जा रही जिस दीवार का पंजाब में जोर शोर से प्रचार करके पंजाबियों को भावुक किया जा रहा है उस दीवार का अस्तित्व आंखों से देखने व तथ्यों की पड़ताल करके जो नतीजा निकलता है उससे पंजाब में करीब पांच दशक पहले फैलाई गई एक भ्रांति की याद ताजा हो गई है. उस दौर में भाखड़ा डैम का निर्माण हुआ था व तब शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में एक शोशा छोड़ कर किसानों को भ्रमित किया गया था कि पंजाब के खेतों को मिलने वाले पानी से बिजली रूपी ताकत को निकालकर उपज बढ़ाने की ताकत को कम कर दिया है. इस प्रचार का जवाब देने के लिए बाकायदा पंजाब के लोक सम्पर्क विभाग को गांव-गांव में फिल्में दिखा कर लोगों को समझाना पड़ा था कि पानी का इस्तेमाल केवल बिजली पैदा करने वाली मशीन को घुमाने के लिए किया जाता है न कि पानी में से कोई चीज निकाली जाती है.
हांसी-बुटाना नदी के साथ बनने वाली दीवार को बरसात के मौसम में उफनने वाले घग्गर दरिया से होने वाली अनुमानित तबाही से जोड़ कर जिस प्रकार तथ्य पेश किए जा रहे हैं व सिरे से ही गलत व भ्रामक हैं. जिस विवाद को लेकर पंजाब व हरियाणा के नेता भारत-पाक नेताओं की तरह बयानबाजी कर रहे हैं. उसके आधार पर जो दीवार है उसकी उंचाई धरातल से एक फुट भी उंची नहीं है. सही मायनों में इस विवाद का तो कहीं ओर-छोर ही नहीं दिखता. हांसी-बुटाना नहर जिसमें अभी तक पानी छोड़ा नहीं गया है व विवादों के न्यायपालिका में लंबित होने के कारण इसमें पानी आने की निकट भविष्य में कोई उम्मीद भी नहीं है. बरसातों के दौर में जिस स्थान पर 1993 में पानी के तेज बहाव ने मिट्टी से बने बांध को तोड़ा व 2010 में पानी के बहाव ने हांसी-बुटाना नहर के उस हिस्से को तोड़कर हरियाणा में भारी तबाही मचाई थी. हरियाणा का जल सिंचाई विभाग उसी स्थान पर नहर के बैड से 2-3 फुट नीचे से लेकर वहां की भूमि के तल तक कंक्रीट की दीवार बना रहा है ताकि बाढ़ का पानी नहर के नीचे की मिट्टी में सेंध लगाकर फिर से नहर का हिस्सा क्षतिग्रस्त कर हरियाणा में कहर न बरपा दे जबकि बन रही दीवार से पंजाब की ओर जो भूमि है वहां करीब 25 गांव तो हरियाणा के हैं.
पंजाब व हरियाणा में पानी की बांट को लेकर उसे राजनीतिक मुद्दा बनाए रखने का रिवाज काफी पुराना है. घग्गर से बरसातों के दौर में नुक्सान से बचाने के लिए पंजाब सरकार को तो यह करना चाहिए था कि घग्गर के रास्ते में पडऩे वाले पुलों पर छोटे-छोटे बांधों का निर्माण करकेपानी को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती ताकि सतलुज व यमुना नदी के रास्ते में गिरने वाले पानी (चंडीगढ़ से लेकर काला अम्ब तक के बरसाती पानी व इसी स्थान पर बह कर आने वाले पहाड़ों के बरसाी पानी) को रास्ते में थामने की कोई पहलकदमी की जाती पर जहां हरियाणा सरकार अपने प्रदेश के निवासियों को बाढ़ से बचाने के लिए सक्रिय है वहीं पर पंजाब सरकार के सिंचाई विभाग के अधिकारी ये कहकर घग्गर की सफाई तक से पल्ला झाड़ रहे हैं कि घग्गर की गहराई 'यादा होने के कारण उसे सफाई की जरूरत नहीं है यानि वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि नदी की सफाई भी नहीं की गई और नेता हवा में बयान दाग कर माहौल को तनावपूर्ण बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.


दीवार को पंजाब में सियासी मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी

हांसी-बुटाना नहर के करीब बन रही दीवार को पंजाब में एक सियासी मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी चल रहा है. वैसे भी चुनाव नजदीक हों तो लोगों का ध्यान मौजूदा समस्याओं से हटाने के लिए या तो प्रदेश की अस्मिता को खतरे में बता दिया जाता है या फिर कोई ऐसा कदम उठाया जाता है जिससे प्रदेश के मतदातओं में यह संदेश जाए कि उनकी सरकार प्रदेश के हितों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.
पिछली कांग्रेस सरकार में कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने पानी से संबंधित कुछ समझौतों को विधानसभा में रद्द करके सियासी वाहवाही लूटी थी जिसका यह असर रहा कि शिरोमणि अकाली दल के परंपरागत वोट बैंक मालवा में अकालियों को 2007 के विधानसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी थी. कांग्रेस को मालवा में अ'छी खासी बढ़त मिली थी. अब चुनावी बेला में हरियाणा द्वारा जमीन के नीचे अपने क्षेत्र में स्थित हांसी-बुटाना नहर को बचाने के लिए बनाई गई दीवार को सत्ताधारी अकाली एक मार्मिक मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं.
इस सियासी गोलबंदी का सबसे बड़ा सबूत पंजाब सरकार के लोक सम्पर्क विभाग की मासिक पत्रिका जागृति के जुलाई अंक में प्रकाशित दो पृष्ठ की गर्मागर्म स्टोरी है जिसका शीर्षक रखा गया है 'क्लेश की दीवारÓ.  इस स्टोरी में एक चेतावनी के अंदाज में लिखा गया है कि हांसी-बुटाना नहर के साथ बसे पंजाब के ग्रामीण निवासियों में गुस्से की लहर पैदा हो गई है व पंजाब सरकार को आशंका है कि यदि जल्द ही कोई कारगर हल न निकाला गया तो हालात काबू से बाहर हो सकते हैं व इलाके की कानून व्यवस्था भी बिगड़ सकती है. इसे ध्यान में रखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह व हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा को पत्र लिख कर उनसे निजी हस्तक्षेप की मांग की है.
उन्होंने हुड्डा को चेतावनी दी है कि हरियाणा की तर्ज पर यदि पंजाब ने भी अपने क्षेत्र से जाने वाली नदियों व नालों पर बांध बनाने शुरू कर दिए तो हरियाणा के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी.
क्या यह लोगों के गुस्से, कानून एवं व्यवस्था के बिगडऩे की आशंका व पंजाग के मुख्यमंत्री द्वारा हरियाणा को जाने वाले नदी-नालों को बंद करने की सीधी चेतावनी नहीं है. और से सब सरकारी मुखपत्र में छपता है तो यह सारी सरकारी मशीनरी के लिए संकेत होता है कि हुक्मरान किस मुद्दे पर कौन सा स्टैंड ले चुके हैं ताकि सरकारी अमला अपना व्यवहार सरकार की मर्जी के अनुरूप ही करे. इसके बाद हरियाणा द्वारा बनाई गई '16फुट की दीवार का मुआयना करने गए पंजाब के मंत्री जनमेजा सिंह सेखों को जब वह दीवार नहीं दिखी तो वहां यह भी कहा गया कि हरियाणा वालों ने दीवार को जमीन में धंसा दिया है या दीवार को लिटा दिया है. ये सारी बातें पंजाब के उन इंजीनियरों के सामने हुई जो इंजीनयरिंग के कायदे जानते हुए इस बात को अ'छी तरह से जानते हैं किसी कंक्रीट की दीवार को जमीन में धंसा देने या लिटा देने का अर्थ क्या होता है.
दूसरी तरफ इस क्षेत्र में बसे पंजाब के किसान इस चिंता में डूबे हुए हैं कि यदि बाढ़ आ गई तो उनके खेतों में खड़ी फसलों की बर्बादी निश्चित है.

आसमानी आफत से डरे लोग सरकारी राहत के इंतजार में


ये बहुत अनोख अनुभव और खास अहसास था. हम जिन शहरों में रहते हैं वहां बरसात का मतलब गर्मी से राहत है जिसके स्वागत में छोटे छोटे ब"ो नाच-नाच कर बरसते पानी में नहाते हुए कुलांचे भरते हैं मगर उसी बरसात का दूसरा चेहरा देखने को मिला. जिस तरह महाभारत काल में एक दैत्य की कहानी आती है, जिससे सारे गांव की रक्षा के लिए हर रोज किसी न किसी परिवार का एक सदस्य स्वयं ही अपनी बली देने के लिए चला जाता है वैसे ही ये इलाका बरसात के मौसम में अपना कुछ न कुछ अर्पण जरूर करता है. खुशी से नहीं, मजबूरी में. यहां रहने वाले लोगों की असमानी आफत से डरी आंखें पहले आसमान की ओर देखती हैं फिर सरकार की ओर देख किसी राहत का इंतजार करती हैं पर दोनों और से बेबसी ही हाथ लगती है. बरसात जब चाहे अपना कहर बरपा दे. और सरकार के लोगों के दांत निकाल कर विकास के वायदे करते चित्र ही अखबारों में देखने को मिलते हैं. घग्गर के किनारे बसे गांव खराल के सुखदेव सिंह की जमीन अभी से पानी में डूबी हुई है. ये गांव हरियाणा में पड़ता है. हरियाणा सरकार ने सुखदेव जैसे किस्मत के मारों के लिए सिंचाई विभाग के माध्यम से पानी में डूबी जमीन को खाली करवाने के लिए रिंग बांध बनवाए हैं. पानी को लिफ्ट करके खाली पड़ी हांसी-बुटाना नहर में डालने के लिए पंप भी उपलब्ध हैं पर सुखदेव की फसल बर्बाद हो चुकी है पर, फिर भी सरकार का रुख उसे इतना हौंसला जरूर देता है कि मुश्किल दौर में मदद के लिए कोई कंधा पकडऩे वाला तो है.
दूसरी तरफ पंजाब में पडऩे वाले धर्महेड़ी गांव के सरपंच कश्मीर ङ्क्षसह का मानना है कि उनके बचाव के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया जबकि मंत्री-संतरी तो गांव में आ रहे हैं पर खाली भाषण व साथ में आए मीडिया के लोगों को अपने बयान देकर चले जाते हैं. कश्मीर सिंह अकाली पार्टी की टिकट पर गांव का सरपंच बना हैं पर अपनी पार्टी की कारगुजारी को लेकर पूछे गए सवाल पर भड़क जाता हैं. 'पिछले साल बनी हांसी-बुटाना नहर का बांध न टूटा होता तो गांव का एक भी आदमी जिंदा न रहता. पानी नहर टूटने से हरियाणा में घुस गया पर फिर भी सारे गांव में दस से बारह दिनों तक चार से छह फुट तक पानी खड़ा रहा. पानी के निकास का कोई प्रबंध नहीं किया गया. नहरी विभाग वाले पता नहीं सारे साल कौन सी भंग खाकर सोए रहते हैं. इस बार जैसा मौसम है व टूकड़ों में बरसात हो रही है उसके चलते हम अभी तक सुरक्षित हैं पर अगर लगातार बरसात हुई तो हमारा कुछ नहीं बचेगा क्योंकि हरियाणा वालों ने अपनी नहर को जमीना स्तर तक मजबूत कर लिया है जिसके कारण उसके टूटने की कोई संभावना नहीं है. हमें अपने पशुओं की चिंता खाए जा रही है. हमारे घरों का तो भगवान ही मालिक है. ये सिर्फ एक गांव की व्यथा नहीं है. जहां हांसी-बुटाना नहर से पंजाब की ओर पड़ते हरियाणा के 25 गांवों में से टटियाना, सढऱेढ़ी, नंदगढ़, बबूक पुरा, हेमू माजरा, खुशहाल माजरा इत्यादि की यह दशा है वहीं पंजाब में पड़ते हंबड़ा, सरोला, ढाबा, चाबा, सस्सी ब्राह्मणा, सस्सी गु'जरां, हाशिमपुर, मांगटा, ध्यौरा, बीपुर और नया गांव आदि की वही हालत है. इसके इलावा इनके साथ लगते कस्बे रामपुर का बाजार भी तीन-चार फुट पानी में डूब जाता है व जब तक पानी नहीं उतरता वहां न तो दुकाने खुलती हैं न ही कोई गतिविधि चलती है. रामपुर के हरभजन सिंह बताते हैं कि घग्गर के कहर से हर साल नुक्सान होता है. कुछ दुकानदारों ने तो बाढ़ के डर से अपनी दुकानों की फिटिंग ही इस तरीके से करवा रखी है कि दो-तीन फुट पानी आ भी जाए तो उनका कोई नुक्सान न हो. धर्महेड़ी के सरकारी प्राइमरी स्कूल की दीवारें बयान करती हैं कि जब पानी आता है तो शिक्षा का यह मंदिर भी उसके आगे नतमस्तक होने को मजबूर होता है. वहां पढ़ रहे छोटे ब'चों को मिड डे मील खिलाया जा रहा था. दीवारों पर ढाई से तीन फुट पर लगे पानी के निशान अब भी देखे जा सकते हैं. गांव के जमीनी तल से तीन फुट उंचे बने इस स्कूल को देखकर ये तो माना ही जा रहा है कि पांच से छह फुट पानी गांव में आ ही जाता है.



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