प्रमोद कुमार
उत्तर प्रदेश में भाजपा की चुनावी कमान संघ के प्रचारकों ने संभाल ली है. जबकि राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र रथ यात्राओं के जरिए पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं.
रणनीति, धीर-गंभीर सेनापति, सुगठित व उत्साही सेना और मुकाबले का प्रचुर मात्रा में साज-ओ-सामान, जंग में कामयाबी की यदि यही शर्तें हैं तो भाजपा नेताओं के इस दावे को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कसकर तैयार है. पिछले विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर खिसक जाने से अपमानित और मर्माहत भाजपा अब बेहद सतर्कता के साथ अपने पत्ते फेट रही है. जहां राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र रथयात्रा पर निकल रहे हैं, वहीं अन्य नेता शालीनता से मायावती सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने में जुटे हैं. इस रणनीति से पार्टी को कई फायदे नजर आ रहे हैं. यह चुनाव भाजपा के लिए जीवन-मरण से कम नहीं है. यूपी की कमजोरी ने पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर भी सत्ता से बाहर ला पटका है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव पर नजरें टिकाए भाजपा नेतृत्व अपनी खोई ताकत अगर यूपी में तलाश रहा हो तो यह स्वाभाविक ही है. भाजपा के चुनाव अभियान की कमान पूरी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथ में है.
विभाग और जिला स्तर पर नियमित पदाधिकारियों के अलावा आरएसएस प्रतिनिधि के तौर पर तमाम लोगों की तैनाती की गई है. संघ पदाधिकारियों की बहुस्तरीय तैनाती के पीछे दो मुख्य मकसद हैं. पहला, विभिन्न स्तरों पर भाजपा कार्यकर्ताओं को आत्मघाती गुटबाजी से दूर रखना और दूसरा, पार्टी के चुनाव अभियान को व्यवस्थित रखना. जंग के मैदान में कमान राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, सूर्य प्रताप शाही के हाथों में होगी.
खास मोर्चों पर भाजपा के केंद्रीय नेता रथ की कमान संभालेंगे तो द्वितीय पंक्ति में कई वरिष्ठ प्रांतीय नेताओं के अलावा विनय कटियार, वरुण गांधी, वसुंधरा राजे, हेमा मालिनी, स्मृति ईरानी, मेनका गांधी, डॉ. रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान जैसे कई दूसरे चुंबकीय चेहरे भी होंगे. संघ के निर्देशन में पूरा संघ परिवार भाजपा की नैया पार लगाने के अभियान में जुटेगा. विहिप और बजरंग दल के नेता अगले तीन महीने यूपी में सघन प्रवास करेंगे, जबकि आरएसएस के स्वयंसेवक व्यक्तिगत जनसंपर्क और अन्य चुनावी गतिविधियों में भाजपा के कंधे से कंधा मिलाएंगे. मुद्दों के मामले में मायावती सरकार के जनविरोधी कार्यों तथा मंत्रियों के भ्रष्टाचार का बखान भाजपा का प्रमुख चुनावी हथियार होगा. पार्टी बुंदेलखंड में किसानों की गरीबी और आत्महत्याओं को मुद्दा बनाएंगी तो गोरखपुर और मेरठ क्षेत्रों में इस्लामी आतंकवाद एवं मुस्लिम तुष्टीकरण को. जबकि शहरी क्षेत्रों में कानून व्यवस्था के अलावा बिजली-पानी की समस्याएं भी भाजपा के मुद्दों में शामिल रहेंगी.
सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की साख भुनाई जाएगी. उत्तर प्रदेश में भाजपा शासित चारों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को विकास का रोल मॉडल बताकर उतारा जाएगा. चुनाव प्रचार और मतदान की दृष्टि से बूथ स्तर पर कमेटियों का गठन एवं बाकी तैयारी अपनी जगह हैं ही, भाजपा ने जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए प्रचुर मात्रा में चुनाव प्रचार सामग्री और बसपा सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करके वितरित करवा दी है. पार्टी प्रवक्ता डॉ. मनोज मिश्र का दावा है कि पार्टी की यह प्रचार सामग्री मतदाताओं के मानस को मथकर रख देगी. चुनाव से पहले उम्मीदवारों का चयन हर पार्टी के लिए अहम कवायद होता है. लेकिन भाजपा इस मामले में अपने प्रतिद्वंद्वी दलों से काफी पीछे हैं. जबकि नेताओं की आपसी खेमेबंदी और गुटबाजी से आम कार्यकर्ता निराश हैं. गुटबाजी की वजह से ही टिकट वितरण में देरी हो रही है. बहरहाल, करीब सौ सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर पार्टी नेता अब भी एकराय नहीं हैं. लेकिन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश के चुनावों को गंभीरता से लेते हुए गुटबाजी रोकने और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए पार्टी के तेजतर्रार पूर्व संगठन मंत्री संजय जोशी को लगा दिया है.
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