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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Friday, 28 October 2011

सरकार रहे या जाए, नींद पूरी आये


कर्नाटक में भाजपा सरकार संकट में है. हालात इतने बदतर हो रहे हैं कि सरकार बचाना मुश्किल है. भारतीय जनता पार्टी के 'क्राइसिस मैनेजरÓ मीडिया में खबरें चलवा रहे हैं कि उनके रातों की नींद हराम हो गई है और किसी भी कीमत पर वे लोग कर्नाटक की सरकार को बचा लेना चाहते हैं. लेकिन हकीकत यह नहीं है.
राजनीतिक संकट की इस घड़ी में भी भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी दिल्ली की बजाय एक बार फिर नागपुर में हैं. सरकार बचाने का उनका क्राइसिस मैनेजमेन्ट यह है कि उन्होंने अपने दो विश्वसनीय लोगों को सरकार बचाने के काम में लगा दिया है. इन दोनों की हैसियत क्या है वह उनका नाम जानकर ही समझ में आ जाता है. एक हैं विनय सहस्रबुद्धे जो कि रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी के निदेशक हैं तथा नितिन गडकरी के मित्र और परामर्शदाता हैं. क्योंकि भागे हुए विधायक कांग्रेस के संरक्षण में गोवा में आराम फरमा रहे हैं इसलिए गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को भी विधायकों की मान मनौवल के काम में लगा रखा है. खुद गडकरी क्या कर रहे हैं? दोपहर दो बजे घर पर जब एक पत्रकार ने फोन करके बात करनी चाही तो जवाब मिला साहब सो रहे हैं.
इधर दिल्ली में भी हालात अच्छे नहीं है. सुषमा स्वराज हों, अनंत कुमार या अरुण जेटली कोई भी नहीं चाहता कि कर्नाटक की सरकार बचे. अनंत कुमार की खुन्नस है कि अगर वे प्रदेश में मुख्यमंत्री नहीं बन पाये तो भला येदुरप्पा मुख्यमंत्री क्यों बने रहे? अनंत कुमार केन्द्रीय टीम में हैं और वे कभी नहीं चाहेंगे कि कर्नाटक सरकार को दिल्ली का सपोर्ट मिले. कर्नाटक सरकार के जाने के बहाने अरुण जेटली और सुषमा स्वराज संघ को औकात बताना चाहते हैं क्योंकि झारखण्ड में इन नेताओं की मर्जी के खिलाफ  जाकर सरकार बना ली गई थी जिसमें गडकरी की भूमिका अधिक थी. गडकरी को संघ का सपोर्ट था. ये नेता झारखण्ड का बदला कर्नाटक में निकलना चाहते हैं.
अब आप ही सोचिए, कर्नाटक में सरकार बचेगी भी तो कैसे? जब मांझी ही नांव डुबाने में लगा हो तो उसे पार कौन लगाएगा.

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