मृण्मय डे
आपने पढ़ा होगा, उद्योग एवं वाणिज्य व कपड़ा मंत्री, आनंद शर्मा ने देश के निर्यात को और बढ़ावा देने के लिए वित्तीय वर्ष 2011 में कई प्रोत्साहनों की घोषणा की है. ये घोषणाएं 13 अक्टूबर से लागू हुई हैं. प्रोत्साहन देने की यह घोषणा इस साल 12 फरवरी को इसी तरह की गई घोषणा की कड़ी है. हालांकि, ये घोषणाएं बहुत से लोगों को इस बात के लिए विचार मंथन का अवसर देती हैं कि आखिर इन प्रोत्साहनों से क्या हो सकता है और यूरोप और अमेरिका में चल रहे आर्थिक संकट के दौरान ये प्रोत्साहन निर्यात में कैसे तेजी ला पाएंगे.
जिन वस्तुओं का निर्यात ज्यादा होता है उन पर आयात कर वापसी की दरों में खासी कटौती और अस्थिर विनिमय दर दोनों ने मिलकर भारतीय निर्यातकों की संभावनाओं को बदतर बना दिया है. इसके अलावा, मौद्रिक नीति में सख्ती और कर्ज लेने के लिए ऊंची दरें भी भारतीय निर्यातकों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा में कमजोर पडऩे के मामले में गंभीर चिंता के विषय के रूप में सामने आ रही हैं. सबसे बड़ी बात, जिन निर्यातकों ने ऑर्डर बुक कर रखे हैं, उनको अब न सिर्फ ऑर्डर की जमाखोरी, बल्कि कमजोर होते रुपए, जो दुर्दशा को और बढ़ा रहा है, जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा, विभिन्न देशों में अमेरिका द्वारा लगाए गए एंटी-डंपिंग ड्यूटी सहित उनकी व्यापार नीतियों के चलते बहुत-सी वस्तुओं के निर्यात में गिरावट आई है और अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में (जो कुल भारतीय निर्यात के 29 प्रतिशत की हिस्सेदारी करता है), जहां हम पारंपरिक तौर पर निर्यात करते रहे हैं, निर्यात में गिरावट आई है. यह सब मिलकर भारतीय निर्यात की एक बेहद निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत करती है.
इस कहानी का उत्पादन पक्ष भी कुछ ज्यादा चमकदार नहीं है. बिजली का खर्च और मजदूरी की लागत के चलते उत्पादन की लागत भी बढ़ रही है. वस्तु या उत्पाद की कीमत ज्यादा होने के नाते उसे बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने में मुश्किल पेश आ रही है और निर्यातकों को भी बहुत कम मार्जिन मिल रहा है. हालांकि, निर्यात उद्योग के विकास में दूसरे और भी कई मुद्दे हैं जो बाधा पहुंचाते हैं जिनमें राज्य या सरकार द्वारा प्रदत्त बुनियादी सुविधाएं, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क आदि का अस्तरीय होना शामिल हैं. इसके अलावाए भारतीय बंदरगाह पर्याप्त अवसंरचनात्मक सुविधाओं के साथ सुसज्जित नहीं हैं जिससे निर्यातकों को पड़ोसी देशों के बंदरगाहों का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस खराब अवसंरचना के चलते हर साल लगभग 300 बिलियन रुपए का आर्थिक नुकसान हो रहा है. मंत्री महोदय बताते हैं, 'सरकार खास तौर से इस श्रम आधारित क्षेत्र के प्रोत्साहन और समर्थन के लिए हरसंभव निर्णय ले रही है.Ó यदि यह एक संकेत है, तो हम खास तौर पर इस श्रम आधारित विनिर्माण क्षेत्र के निर्यातकों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज की उम्मीद कर सकते हैं.
सरकार को इस बात का अहसास होना चाहिए कि इस तरह के प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करना मात्र अदूरदर्शी ही नहीं, बल्कि आधे-अधूरे मन से की गई कोशिश लगती है और निश्चित रूप से इस क्षेत्र को लगी गंभीर बीमारियों के लिए रामबाण नहीं साबित होगी. यह निर्यात के साथ-साथ राज्य की अर्थव्यवस्था की स्थिति को भी बदतर कर देगी. इन प्रयासों से समग्र निर्यात को थोड़े समय के लिए तो पुनर्जीवित किया जा सकता है, लेकिन लंबे समय में यह करदाताओं के लिए बोझ बन जाएगा! सरकार को चाहिए कि वह उत्पाद विविधीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करे, नए बाजार तलाशे और महान भारतीय निर्यात गाथा को पुनर्जीवित करने के लिए दक्षिण -दक्षिण व्यापार को बढ़ावा दे!
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