निगाहें कहां हैं. निशाना किधर है. और घायल किसे होना है. बात सियासत की हो या रंगमंच की. सबकुछ पहले से लिखा होता है. लेकिन कभी-कभी ऐसी अनहोनी हो जाती है जो सब किये कराये पर पानी फेर देती है.
अब क्या नरेंन्द्र मोदी ने सपने में भी सोचा होगा कि तमाम दर्शकों और पल-पल को कैद करते कैमरों के सामने एक गुजराती मुसलमान. जी हां वही गुजराती मुसलमान जिसके जखमों पर मरहम रखकर मोदी सियासत के मक्का यानी दिल्ली की परिक्रमा करना चाहते हैं, वो जब अपनी जेब से अपनी ही जैसी टोपी निकालकर पहनाने की कोशिश करेगा तो मोदी इनकार कर देंगे. वैसे भी इस टोपी पहनाने वाले को ये समझना चाहिये था. लेकिन चलिये एक बात जो इस बहाने सबको समझ में आ गई कि मोदी जो हैं और जैसे हैं. हमेशा वैसे ही रहेंगे. ठीक भी है. आखिर मौसम और आदमी में फर्क तो होना ही चाहिये.
अब क्या नरेंन्द्र मोदी ने सपने में भी सोचा होगा कि तमाम दर्शकों और पल-पल को कैद करते कैमरों के सामने एक गुजराती मुसलमान. जी हां वही गुजराती मुसलमान जिसके जखमों पर मरहम रखकर मोदी सियासत के मक्का यानी दिल्ली की परिक्रमा करना चाहते हैं, वो जब अपनी जेब से अपनी ही जैसी टोपी निकालकर पहनाने की कोशिश करेगा तो मोदी इनकार कर देंगे. वैसे भी इस टोपी पहनाने वाले को ये समझना चाहिये था. लेकिन चलिये एक बात जो इस बहाने सबको समझ में आ गई कि मोदी जो हैं और जैसे हैं. हमेशा वैसे ही रहेंगे. ठीक भी है. आखिर मौसम और आदमी में फर्क तो होना ही चाहिये.
देश ने गांधी का अनशन और आंदोलन देखा. देश की नई पीढ़ी ने अन्ना में आज के गांधी और उस गांधी का अनशन देखा. और इसी देश ने अब मोदी का पांचसितारा उपवास भी देखा. मोदी का ये उपवास सद्भावना के लिए था. कम से कम कहा तो यही गया था. पोस्टर और बैनर भी यही चिल्ला रहे थे. पर फिर अचानक बीच मे टोपी आ गई. फिर क्या था हर कोई अपने हिसाब से एक-दूसरे को टोपी पहनाने लगा. हालांकि कायदे से देखा जाए तो मसला टोपी का था ही नहीं. टोपी किसी धर्म का प्रतीक हो सकता है, पर धर्म नहीं. उलटे यहां टोपी पहनने से इनकार कर मोदी ने एक मिसाल कायम की है. मिसाल ये कि जनता के सामने या कैमरे पर ऐसी नौटंकी करने से बेहतर है कि आप जो हैं आप वही दिखाएं. यहां नौटंकी तो उन्होंने की जिन्होंने मोदी को टोपी पहनाने की कोशिश की. मोदी यहां उपवास पर बैठे थे. ना कि किसी धार्मिक ओयजन पर. और यूं भी मज़हबी उलेमाओं और इमामों के अलावा बाकी मुसलमान अमूमन तभी टोपी पहनते हैं जब वो नमाज पढऩे जा रहे होते हैं. फिर ऐसे मंच पर मोदी को टोपी पहनाने जरूरत ही क्या थी?
पर टोपी के मुद्दे को छोड़ दें तो नौटंकी मोदी साहब ने भी कम नहीं की. अब तक ताल ठोक कर बोलने वाले मोदी पहली बार खुद से समझौता करते नजर आए. मंच पर मौलवी, इमामों और यहां तक कि पर्दानशीं मुस्लिम औरतों तक की परेड करवा दी. जो मोदी को करीब से जानते हैं वो खुद हैरान हैं कि आखिर मोदी को अब मस्लिम मुखौटे की जरूरत क्यों आ पड़ी? तो इसका एक ही जवाब समझ में आता है. छह करोड़ गुजराती के बल पर मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री तो बन सकते हैं, पर 120 करोड़ हिंदुस्तानियों का प्रधानमंत्री वो बिना ऐसे मुखौटों के नहीं बन सकते.
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