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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Friday, 28 October 2011

मायावती, मीडिया और नोएडा का अपशकुन


तो क्या मायावती अगली बार फिर भी मुख्यमंत्री बन पाएंगी? सवाल दिलचस्प है कि क्या मायावती अगली बार मुख्यमंत्री बन पाएंगी? यह सवाल उन की नोएडा यात्रा को ले कर है. अभी तक तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसी भी मुख्यमंत्री के लिए नोएडा एक अपशकुन की तरह रहा है.
इसे अंधविश्वास मानें या कुछ और लेकिन हुआ अभी तक यही है कि बतौर मुख्यमंत्री जो भी नोएडा गया है वह अपना मुख्यमंत्रित्व फिर दुहरा नहीं पाया है. नारायणदत्त तिवारी, वीरबहादुर सिंह, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह सब के सब नोएडा अपशकुन की चपेट में कहिए चहेट में आ चुके हैं. लेकिन मज़ा यह कि किसी भी भाषा के अखबार या चैनल ने इस अपशकुन को जऱा ठहर कर ही सही याद दिलाने की जुर्रत नहीं की. कारण भी साफ  है. मीडिया पर मायावती का खौफ इस कदर तारी है कि किसी भी अखबार या चैनल में दम नहीं है कि इस बात या मायावती की किसी भी बात पर असहमति या विरोध दर्ज कर सके. जो कोई भी गलती से कर गया उस की नौकरी नहीं रहेगी यह पूरी तरह तय है. या फिर वह अखबार या चैनल उत्तर प्रदेश में चल नहीं सकता. यह भी तय है. और अब हम सब जानते हैं कि मीडिया जो कॉरपोरेट सेक्टर की बांदी है सो किसी कारपोरेट सेक्टर की हैसियत नहीं है कि मायावती से जऱा भी चू-चपड़ करने की सपने में भी सोच सके. कुछ बरस पहले हिंदुस्तान टाइम्स के एक स्थानीय संपादक सीके नायडू जो दक्षिण भारत से लखनऊ आए थे, मायावती के खिलाफ़  अंबेडकर पार्क के बाबत एक टिप्पणी लिखने के जुर्म में दूसरे ही दिन छुट्टी पा गए थे. कहा गया कि उन का कांट्रैक्ट खत्म हो गया था. ऐसी जाने कितनी घटनाएं हैं जो मायावती के खिलाफ  क्या किसी भी सत्तानशीन छोडि़ए किसी भी राजनीतिज्ञ या अफसर के खिलाफ लिखने या कहने की अब किसी की हिम्मत नहीं होती. जिस भी किसी ने लिखा या कहा बरबाद हो गया. और कोई एक भी उस के पक्ष में खड़ा होना तो दूर नैतिक समर्थन भी देने वाला नहीं मिला. पत्रकार पहले भी नौकरी करते थे, वॉचडॉग कहे जाते थे पर अब वह पेट डॉग हैं. जिन की भूमिका अब सत्तानशीनों पर गुर्राने, भूंकने की नहीं दुम हिलाने तक सीमित कर दी गई है. अब किसी की नौकरी जाती है तो आपसी वैमनस्य में या जोड़-तोड़ में. खबर लिखने के लिए नहीं. तो जो हर बार किसी मुख्यमंत्री के नोएडा जाने या न जाने पर अपशकुन का कयास भी लिख दिया जाता था, किसी अखबार ने इस पर सांस नहीं ली. नहीं मुख्यमंत्री नोएडा जाए तो भी नहीं जाए तो भी टॉप बाक्स हर अखबार की खबर होती थी, अपशकुन के मसले पर. याद कीजिए जब नोएडा का निठारी कांड हुआ था तब तमाम हो हल्ले के बावजूद तब के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह इसी डर से नोएडा नहीं गए तो नहीं गए. उन्हों ने अपनी जगह अपने मूर्ख और जाहिल भाई शिवपाल सिंह यादव को तब नोएडा भेजा था, मासूमों की लाश पर आंसू बहाने के लिए, परिजनों के आंसू पोछने के लिए. और उस मूर्ख और संवेदनहीन शिवपाल ने तब नोएडा जा कर कहा था कि बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं. गया था यह मूर्ख आंसू पोछने पर मासूमों के परिजनों के ज़ख्मों पर नमक छिड़क कर चला आया. निठारी कांड में मासूमों की हत्या से भी ज़्यादा हैरतनाक घटना थी यह. मुलायम फिर भी नोएडा नहीं गए. इस डर से कि अगर नोएडा गए तो अगली बार वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे. अब अलग बात है कि उन के राज में गुंडई और भ्रष्टाचार की बयार इस कदर बही कि यह बयार आंधी में तब्दील हो गई. इस आंधी में वह बह गए. गलतियां और भी कई कीं उन्होंने पर उन के राज में छाई गुंडई ने उन के राज के ताबूत पर आखिरी कील का काम किया. वह इतने बदहवास हो गए कि कल्याण सिंह से हाथ मिला बैठे. रही सही ताकत भी गंवा बैठे. और फिर जिस के दोस्त और सलाहकार अमर सिंह हों उस को भला दुश्मनों की भी क्या ज़रुरत?
परिवारवाद और जातिवाद का पलीता भी अभी उन्हें दीवाली का पटाका लग रहा है. इसी का फायदा मायावती उठा रही हैं. यह मुलायम समझ नहीं पा रहे. जिस पर डा. अयूब की पीस पार्टी अब की चुनाव में उन की मुस्लिम वोटों की जमीदारी भी छीनने की बिसात बिछा बैठी है. और वह मायावती से डरे दीखते हैं. और मायावती उन से. तभी तो मायावती ने नोएडा में जो गगनविहारी संवाद कांग्रेस के लिए जारी किए हैं कि मीरा कुमार या शिंदे को कांग्रेस प्रधानमंत्री बना सकती है उस की मार कांग्रेस पर कम मुलायम पर उन्होंने ज़्यादा डाली है. बिना मुलायम या उन की पार्टी का नाम लिए. राजनीति हमेशा से संभावनाओं का शहर रही है और रहेगी. पर क्या कांग्रेस सचमुच किसी मीरा कुमार, किसी शिंदे या किसी और दलित नेता को प्रधानमंत्री बना सकती है अभी और बिलकुल अभी? हरगिज़ नहीं. तो फिर मायावती ने तीर या तुक्का आखिर क्यों छेड़ा? इसलिए भी कि चुनाव अभी लोकसभा के नहीं उत्तर प्रदेश विधान सभा के आसन्न हैं. और कि यह भी कि यह बात कहने के लिए मायावती ने नोएडा को ही क्यों चुना? इस के दो निशाने हैं. पहले मुलायम और दूसरे कांग्रेस. हालांकि अभी यह कयास लगाना बहुत जल्दबाज़ी होगी तो भी मायावती के डर से कांग्रेस और मुलायम चुनावी समझौता कर सकते हैं. मुलायम मायावती से डरे हैं तो कांग्रेस अन्ना से. इसीलिए एक सांस में मायावती ने अन्ना और रामदेव के आंदोलन पर सकरात्मक प्रतिक्रिया दी है. कि अन्ना आएं उत्तर प्रदेश में और कांग्रेस का पटरा बैठाएं. राहुल का तंबू कनात उखाडें. कांग्रेस, मुलायम दोनों को एक साथ निपटाएं. दूसरे मायावती ने इसी भाषण में एक और कौड़ी खेली है, एक और बिसात बिछाई है अपने प्रधानमंत्री बनने की. याद कीजिए बीते लोकसभा चुनाव में वाम मोर्चे तथा कुछ धड़ों ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नामित किया था. अस्सी एकड़ का दलित पार्क बना कर उन्होंने राष्ट्रपति भवन के तर्ज पर दिल्ली का दूसरा सत्ता केंद्र दिखा दिया है बरास्ता दलित कार्ड. आप को जो करना हो करिए. मायावती ने बता दिया है कि वह तो दलित कार्ड और अपनी तानाशाही के बूते देश पर राज करने को तैयार हैं. कितना कोई रोकेगा? उनका न यह डरा हुआ मीडिया कुछ बिगाड़ सकता है न अदालतें, न ही यह राजनीतिक दल. नहीं सोचिए कि चाहे लखनऊ का अंबेडकर पार्क हो, कांशीराम पार्क हो या नोएडा का यह राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल पार्क हो, सुप्रीम कोर्ट आर्डर-आर्डर करता रह गया, कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की नोटिस देता रह गया लेकिन मायावती का यह काम रुकने के बजाय दिन रात चलता रहा. अभी भी चल रहा है. न कोई अदालत रोक पाई, न कोई मीडिया, न कोई प्रतिपक्षी दल. यह एक नई आहट है. इसे कोई राजनीतिक पंडित, कोई मीडिया, कोई संवैधानिक संस्था नहीं जान पा रही या कह पा रही है सब कुछ जानते समझते हुए भी तो इसे क्या कहेंगे? मायावती के एक कैबिनेट सचिव हैं शशांक शेखर. आईएएस नहीं हैं. पर बड़े-बड़े आईएएस अफसरों पर चाबुक चलाते हैं. और ये श्रेष्ठता का मारे आईएएस अफसर कांख भी नहीं पाते. सुप्रीम कोर्ट पूछ कर रह जाती है कि यह कैसे कैबिनेट सेक्रेटरी बना दिए गए हैं? अचानक वह जनहित याचिका वापस हो जाती है. अब देखिए दूसरी जनहित याचिका भी दायर होती है इसी बात को ले कर. सुप्रीम कोर्ट अभी तारीखों के मकडज़ाल में है. देखिए फिर कब कुछ पूछती है. पूछती भी है कि नहीं. नहीं पूछना होता तो आय से अधिक संपत्ति पर अभी तक फैसला आ गया होता. लेकिन मायावती के मसले पर सुप्रीमकोर्ट सुस्त है. मीडिया तो कुत्ता हो ही गई है.  अब यहीं देखिए कि सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने मुलायम, मायावती दोनों के खिलाफ आय से अधिक की संपत्ति के विवरण दे रखे हैं. है किसी अखबार या चैनल में दम कि आरटीआई के रास्ते या फिर उस की नकल मांग कर उस छाप दे? या फिर विदेशी बैंकों में भी जमा कालाधन की सूची सुप्रीमकोर्ट से निकाल कर देश की जनता को दिखा दे? अफसोस कि अपने देश में कोई असांजे भी तो नहीं है!

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