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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Sunday, 21 November 2010

केवल गुड गवर्नेस ही है सत्ता में दोबारा वापिसी की गारंटी


अर्जुन शर्मा

आज अफ्गानिस्तान में अमेरिका व मित्र राष्ट्रों की सेनाएं पाकिस्तान को साथ लेकर लड़ रही हैं। इससे पूर्व रूस ने अफ्गानिस्तान पर आधिपत्य जमाने के चक्कर में आज आपस में लड़ रही सेनाओं का मिला जुला विरोध झेला था पर इतिहास गवाह है कि अफ्गानिस्तान पर आज तक दो ही शासक काबू पा सके हैं। पहला सिकंदर और दूसरे शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह।

एक इतिहास की बात पाठकों के साथ सांझी करता हूं। जब महाराजा रणजीत सिंह अफ्गानिस्तान पर काबिज हुए तो काबुल स्थित शिविर में उनका मुख्य रसोईया उनके सामने उपस्थित हुआ। उसने बयान किया कि रसोई भंडार से नमक और मिर्च मसाला खत्म हो गया है। महाराजा ने अपनी जेब से पैसे निकाल कर मुख्य रसोईये को विदा किया ताकि वो नमक-मसाला खरीद कर अपनी कमी पूरी कर सके। महाराजा के पास बैठे जरनैलों ने हैरान होते हुए महाराजा से प्रश्न किया कि ये देश जीत कर भी महाराजा नमक मसाले जैसी तुच्छ वस्तु के लिए पैसे जेब से देंगे? महाराजा का जवाब था कि यदि मैं अपने सैनिकों को बाजार से नमक मसाला लूटने की छूट दे दूंगा तो वे मेरे नाम पर सारा शहर लूट लेंगे। जिससे भी जवाब तलबी की जाएगी, उसका यही जवाब होगा कि जनाब मैने तो आपके आदेश का पालन करते हुए केवल नमक मसाला ही लूटा था, बाकी लूट किसने की उसकी मुझे कोई जानकारी नहीं। सो ऐसी अराजकता से शहर को बचाने के लिए यही पर्याप्त है कि नमक मसाला अपनी जेब से मंगवा कर किसी को कुछ भी लूटने की छूट न दूं।

यह घटना महाराजा के अपने मुल्क में नहीं बल्कि जीते गए देश की है जहां की जनता को परेशानी से बचाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने इतनी महानता व समझदारी दिखाई। तभी तो बरसों पहले घटी ये घटना इतिहास में दर्ज है व आप लोग इसे आज पढ़ कर महाराजा की सोच का आसानी से आकलन कर सकते हैं। इस घटना का प्रचार करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह को कहीं विज्ञापन छपवाने की भी जरूरत नहीं पड़ी।

जो लोग महाराजा रणजीत सिंह जैसा शासन देने का सपना देखते हैं, उन्हें अच्छे व जन हितैषी शासकों के जीवन प्रसंग भी पढऩे चाहिएं व उन पर अमल करते हुए आम जनमानस की समस्याओं के प्रति सकारात्मक तथा आश्वासन के बजाए स्वंम अनुशासन से भरा नजरिया रखना चाहिए।

एक सज्जन ने पिछले दिनों तंज कंसते हुए कहा कि चंद्रमां पर पानी की तलाश करके छाती ठोंकने वालों को धरती पर पैदा हो रही पानी की समस्या पर भी विचार करना चाहिए। चांद पर पानी तलाश करने जैसे दुलर्भ काम को अंजाम देने वाले यदि धरती पर बिजली पैदा करने के और नए तरीके खोजते तो वो प्राप्ति ज्यादा व्यवहारिक होती। खैर ये विज्ञान की प्राप्ति से जुड़े मामले हैं जिनकी मुझे बहुत ज्यादा समझ नहीं है पर उस साधारण व्यक्ति की दलील तो वास्तव में कायल करने वाली ही लगी।

हमारा पंजाब जिसे सारे राष्ट्र में सबसे अधिक ऊर्जावान प्रदेश होने का गौरव हासिल होता रहा है, मौजूदा दौर में हवाई कल्पनाओं के कारण बहुत ज्यादा पिछड़ता प्रतीत हो रहा है। •ामीन से जुड़ी समस्याओं की तरफ ध्यान दिया जाए व शासन का एक मानवीय व अनुशासित चेहरा जनता के सामने पेश किया जाए तो सत्ता पाने या वापिस फिर से सत्ता पाने के लिए किसी मदारी जैसे तमाशे की जरूरत नहीं पड़ेगी।

पंजाब की धरती जिन गुरु साहिबान के नाम पर बसी है उन्होंने धर्म और सियासत को लेकर जो संदेश दिया है वो पावन दरबार साहिब व श्री अकाल तख्त साहिब के भवनों के निर्माण के सिद्धांत से ही झलकता है। हरिमंदर साहिब के भीतर किसी भी मंजिल व किसी भी कोने में बनी खिड़की को खोल कर देख लें तो श्री अकाल तख्त साहिब दिखाई नहीं पड़ते जबकि श्री अकाल तख्त साहिब की हर मंजिल व हर खिड़की से हरिमंदर साहिब के दर्शन होते हैं। इस प्रकार के निर्माण के पीछे गुरु साहिबान की दूरदृष्टि से निकला संकेत ये था कि सियासत करते समय (श्री अकाल तख्त साहिब सत्ता की शक्ति के प्रतीक हैं) हमेशा धर्म याद रहे ताकि सत्ता चलाने वाले हमेशा न्याय के रास्ते पर ही चलें जबकि धार्मिक गतिविधियों में लीन होते समय कभी भी सियासत दिखाई न पड़े। यदि यही माडल पंजाब की धरती पर पूरी इमानदारी से लागू हो जाए तो पंजाब देश का ही नहीं, दुनिया का सबसे ऊर्जावान प्रदेश हो सकता है।

इसके साथ आधुनिक युग में सत्ता की निरंतरता की मिसाल दी जाए तो नरेंद्र मोदी का गुजरात माडल, शिवराज सिंह चौहान का मध्य प्रदेश दर्शन व शीला दीक्षित का दिल्ली चिंतन अच्छी उदाहरण है। हालांकि हरियाणा में बहुत कठिनाई के बावजूद सत्ता में वापिस आए भुपेंद्र सिंह हुड्डा भी जवाबदेय प्रशासन के जनक तो साबित हुए ही हैं।

गुजरात में नरेंद्र मोदी ने बेहतरीन सड़कें (बिना टौल टैक्स वाली), बेमिसाल बिजली उत्पादन व जनता को जवाबदेय शासन दिया, तभी वे तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने, सारे देश में बनी खलनायक की छवि के बावजूद।

शिवराज सिंह चौहान अपनी सादगी व कम वायदे, ज्यादा काम के कारण मध्य प्रदेश की सत्ता पर दोबारा काबिज हुए। उन्होंने वायदे करते समय संयम व आत्म विश्लेषण को अपना हथियार बनाया व जनता को ये समझाने में कामयाब हुए कि जहां नेताओं को झूठे सपने नहीं दिखाने चाहिएं वहीं जनता को भी अपने प्रदेश की वित्तिय सीमाओं को समझते हुए धरातल पर घटित हो सकते विकास का ही सपना देखना चाहिए।

शीला दीक्षित ने जंगल जैसी अराजक तस्वीर वाली दिल्ली की सत्ता संभाल कर सबसे पहले दिल्ली की •ामीनी जरूरतों को समझा व उन पर पूरी तनदेही से काम किया। उन्होंने साबित किया कि विकास जैसा मुद्दा भी जनता को लुभाता है बशर्ते सचमुच विकास के प्रति सरकार की इमानदारी का संदेश सामान्य गति से जनता तक पहुंचे।

भुपेंद्र सिंह हुड्डा ने शरीफ व जन हितैषी सरकार का चेहरा हरियाणा वालों को दिखाया। उन्होंने अपने कौशल से विपक्ष के हाथ में कोई ठोस मुद्दा नहीं आने दिया जिसके चलते हुड्डा का तार्किक विरोध करने में विपक्ष कामयाब हो सके।

यदि पंजाब में पच्चीस साल शासन करने के दावे करने वालों को अगली बार घर नहीं बैठना तो •ामीन पर आकर अच्छे शासकों जैसी भूमिका पर आधारित राजनीति करें। पच्चीस के बजाए पचास साल तक राज करें, जनता को भला क्या तकलीफ होगी!

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