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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Sunday, 21 November 2010

वीरान होते गांव, सजते शहर

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2050 तक 70 प्रतिशत शहरी संयुक्त राष्ट्र हैबिटाट की रिपोर्ट में शहरों को आर्थिक विकास का इंजन बताया गया है, क्योंकि शहरीकरण को औद्योगिकरण से जुड़ा बताया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आज दुनिया की आधी जनसंख्या शहरों में रह रही है. अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह अनुपात बढ़कर 70 प्रतिशत हो जायेगा.
उस समय विकसित देशों की 14 प्रतिशत और विकासशील देशों की मात्र 33 प्रतिशत जनसंख्या शहरी सीमा से बाहर होगी. शहरीकरण की गति विकासशील देशों में सबसे तेज है. यहां प्रति माह पचास लाख लोग शहरों में आ जाते हैं. विश्व में शहरीकरण में वृद्धि के 95 फ़ीसदी का कारण यही है. शहरीकरण में वृद्धि कई कारकों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम है.
जैसे भौगोलिक स्थिति, जनसंख्याई वृद्धि, ग्रामीण-शहरी प्रवास, राष्ट्रीय नीतियां, आधारभूत ढांचा, राजनीतिक-सामाजिक-ओर्थक परिस्थितियां. वर्ष 1990 के दशक में विकासशील देशों में शहर 2.5 प्रतिशत वार्षिक की गति से बढ़ रहे थे, लेकिन इसके बाद उदारीकरण, भूमंडलीकरण ने विकासशील देशों में शहरीकरण को तेजी से बढ़ाया. विशेषज्ञों के अनुसार विकासशील देशों में शहरीकरण की गति तभी धीमी पड़ेगी, जब अफ्रीका और ऐशया के ग्रामीण बहुल क्षेत्र शहरी केंद्रों में बदल जायेंगे.
वर्ष 2050 तक विकासशील देशों की शहरी जनसंख्या 5.3 अरब हो जायेगी, जिसमें अकेले ऐशया की भागीदारी 63 प्रतिशत यानि 3.3 अरब की होगी. 1.2 अरब लोगों के साथ अफ्रीका दुनिया की एक-चौथाई शहरी जनसंख्या होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े-बड़े महानगर अब आपस में मिलकर वृहद महानगर या मेगा रीजन बना रहे हैं. जैसे चीन में हांगकांग-शेनजेन-ग्वोझाऊ, जापान में नगोया-ओसाका-क्योलटो और भारत में भी मुंबई व दिल्ली आसपास के शहरों से जुड़कर बृहद महानगर बन रहे हैं.
विकासशील और विकसित देशों के शहरीकरण में एक मूलभूत अंतर यह है कि जहां विकसित देशों में उद्योग व सेवा क्षेत्र के विस्तार और व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों के कारण शहरी क्षेत्र बेरोजगारी व झुग्गी-झोपडिय़ों से मुक्त रहे, वहीं विकासशील देशों में स्थिति इसके विपरीत है.
विकसित देश ऊंची उत्पादकता, संसाधनों की तुलना में कम आबादी, औद्योगिकरण, मशीनीकृत खेती ओद माध्यमों से शहरों में बसी जनसंख्या को रोजी-रोटी मुहैया कराने में सफ़ल हुए, लेकिन विकासशील देशों में ऐसी स्थिति नहीं है. इन देशों में उत्पादक जनसंख्या के प्रवास से गावों में बुजुर्ग व महिलाओं की संख्या बढ़ी, जिससे कृषि कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. यही कारण है कि खाद्यान्न पैदा करने वाले परिवार अब खरीदकर खा रहे हैं.
विकासशील देशों में बढ़ती भुखमरी व महंगाई का एक बड़ा कारण यही है. इस समय विकास के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती गरीबी का शहरीकरण रोकने की है.
विकसित देशों की भांति शहरीकरण के लिए जिस बड़े पैमाने पर संसाधनों की जरूरत होती है, उसका विकासशील देशों के पास अभाव है. अभी जो शहरीकरण का स्तर है, उसमें भी जल-मल निकासी, गंदे पानी के शोधन, पार्किंग, पेयजल, आवास, अस्पताल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. यहां सिफऱ् बिजली, सड़क, पानी का ही बुनियादी अभाव नहीं है, बल्कि बेहतर शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन और आधुनिक सुविधाओं की चीजें भी अनुपस्थित हैं.
विकासशील देशों की बहुसंख्यक आबादी का आधार कृषि एवं ग्रामीण जीवन है. ऐसे में विकासशील देशों को चाहिए कि वे शहरीकरण की बजाये आधुनिकीकरण,यंत्रीकरण तथा प्रौद्योगिकरण पर अधिक बल दें. इन देशों में गावों व कस्बों में फ़ैक्टरी लगाने,औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और स्वरोजगार के साधन मुहैया कराने की जरूरत है.
गावों के विकास के लिए इस तरह की योजना बने कि ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, बिजली और पेयजल उपलब्ध हो.

दुनिया की तुलना में जनसंख्या
भारत की आबादी 2001 की जनणना में एक अरब के आंकड़े को पार कर 102.87 करोड़ हो गयी थी.
हालांकि जनसंख्या की औसत वार्षिक वृद्धि दर वर्ष 2001 में कम होकर 1.95 प्रतिशत रह गयी. इसके बावजूद भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर विकसित देशों की तुलना में ही नहीं, बल्कि विकासशील देशों की तुलना में भी बहुत अधिक है. वर्ष 2007 में विश्व जनसंख्या 6,612 मिलियन थी, जिसमें भारत की जनसंख्या लगभग 1,123 मिलियन थी. इस हिसाब से विश्व की कुल जनसंख्या में भारत का हिस्सा 16.98 प्रतिशत है.
भारत में वर्ष 2000-07 में जनसंख्या की औसत वार्षिक वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत थी जो विश्व औसत वार्षिक वृद्धिदर (1.2 प्रतिशत) से अधिक है. चीन की जनसंख्या वर्ष 2007 में 1,320 मिलियन थी. चीन की वर्ष 2000-07 में जनसंख्या की औसत वार्षिक वृद्धिदर 0.6 प्रतिशत थी जो विश्व जनसंख्या की औसत वृद्धि दर का आधा था. हालांकि, भारत की जनसंख्या वृद्धि दर कई देशों की तुलना में कम है, किंतु ऐसे देश जनसंख्या के आकार में छोटे हैं.
पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनसंख्या वृद्धिदर भारत से बहुत अधिक है. विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रण में है, जबकि विकासशील देशों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. भारत में जनसंख्या की वर्तमान वृद्धि दर को देखते हुए भविष्य में जनसंख्या के आकार में चीन से आगे निकल जाने की संभावना है.

दो बच्चों के नियम को लेकर विवाद
जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनाये गये कानून को लेकर विवाद है. जनसंख्या नियंत्रण के सवाल पर भारत में लंबे समय से विवाद चल रहा है.
नया विवाद यह है कि क्या दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को चुनाव लडऩे से रोकना ठीक है? कई लोग पंचायत स्तर पर लागू दो बच्चों के क़ानून को अलोकतांत्रिक मानते हैं. ये क़ानून राजस्थान और हरियाणा में 1994 से लागू है. इसके बाद चार और राज्यों आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, ओडि़सा और मध्यप्रदेश में इसे लागू किया गया है. इस क़ानून के मुताबिक वो व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता, जिसके क़ानून के अनुसार निर्धारित निश्चित तारीख के बाद दो से अधिक बच्चे हैं. इसके अनुसार अगर किसी के पद रहते दो से अधिक बच्चे होते हैं, तो उसे पद से हटाने का भी प्रावधान है. जहां तक दो बच्चों वाले क़ानून को पंचायत में लागू करने की बात है, पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि एक तो यह व्यावहारिक नहीं, दूसरा लोकतांत्रिक रूप में भी गलत है.महिलाओं पर असरसविंधान के 73वें संशोधन के बाद पंचायत में महिलाओं की भागीदारी 33 फ़ीसदी तक कर दी गयी.
इस क़ानून से सबसे अधिक नुक़सान महिलाओं को होने की बात कही जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था के तहत दो बच्चों वाले नियम का सबसे ज्यादा असर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पर हो रहा है. अक्सर महिलाओं, ख़ासतौर पर ग्रामीण महिलाओं के पास परिवार नियोजन के साधन अपनाने का अधिकार नहीं होता. ऐसी स्थिति में पति की मर्जी पर निर्भर महिलाओं पर इस नियम का ख़ासा असर पड़ रहा है.

नीति का सवाल
भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति-2000 में भी बलपूर्वक जनसंख्या बढ़ोतरी को रोकने के बजाय स्वेच्छा से अपनाने का विकल्प दिया गया है. साथ ही एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की बात भी कही गयी है. जानकारों का मानना है कि दो बच्चों की नीति दरअसल जनसंख्या नीति के इस सिद्धांत की अनदेखी है. जितनी औरतें भारत में गर्भपात के कारण मरती हैं, उतनी यूरोप में एक साल में नहीं मरतीं. लोगों को ऐसा विकल्प मिले जिसके बारे में उनके पास जानकारी हो.
लोगों को विकल्प मिले कि वह किस तरह के परिवार नियोजन साधन अपनाना चाहते हैं. अगर स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया जायेगा तो यह कैसे मुमकिन है. वही इस नियम का समर्थन कर रहे जानकारों का मानना है कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति-2000 के अनुसार दस साल में जनसंख्या का स्थायीकरण शुरू हो जाना चाहिए और 2045 में जनसंख्या स्थायीकरण पूरा हो जाना चाहिए और ये तभी संभव है, जब केवल दो बच्चों का परिवार हो.
यदि हम बड़े परिवार की बात करेंगे, तो हम कभी भी जनसंख्या का स्थायीकरण नहीं कर सकते. चीन में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी. परिवार नियोजन जब वहां चलाया गया, तो वहां पर परिवार का आकार छोटा करते-करते एक बच्चे तक पहुंच गये. हालांकि, कुछ दुष्परिणाम भी सामने आये. लेकिन वहां जनसंख्या का स्थायीकरण हुआ.

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