आपका टोटल स्टेट

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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Sunday, 21 November 2010

लक्ष्मी आई है

ऐसा नहीं है कि लक्ष्मी मैया का संबंध सिर्फ दीवाली से ही हो। लड़कियों से भी लक्ष्मी मैया का गहरा नाता है। जब घर में कन्या का जन्म होता है तो अपने घर-परिवारों में यह वाक्य तब सुनने को अक्सर मिल जाता है कि लक्ष्मी आई है। पहली बेटी होने पर कोई सीधे-सीधे यह तो कहता ही नहीं है कि बधाई हो। सब यही कहते हैं कि चलो अच्छा हुआ घर में लक्ष्मी आई है। जब वे कहते हैं कि चलो अच्छा हुआ तो ध्वनित यह होता है कि जैसे कुछ अच्छा नहीं हुआ है। पिछले दिनों मेरी बेटी अमरीका से अपनी नवजात बिटिया के साथ मेरे घर कुछ दिन बिताने आई हुई है। सब सगे-संबंधी और मिलने-जुलने वाले उससे मिलने आ रहे हैं। मुझे भी नानी बनने पर अपार खुशी और संतुष्टि की अनुभूति हो रही है। बधाई देने के लिये आनेवाले हर व्यक्ति ने आमतौर से यह वाक्य कहा कि जी अच्छा हो गया घर में लक्ष्मी आई है। मैं तो इस वाक्य को सुनने की आदि पहले से ही हूं इसलिये मुझे खास आश्चर्य नहीं हुआ। पर एक दिन मेरी बेटी किसी से उलझ पड़ी और यह वाक्य सुनते ही बोली- क्यूं आंटी यह क्यूं कह रहे हो कि लक्ष्मी आई है? यह क्यूं नहीं कह रहे कि सरस्वती आई है? या फिर यही कहो कि बिटिया आई है। क्या बेटा होने पर आप यह कहते कि विष्णु आया है या ब्रह्मा आया है? सवाल ने उन्हें निरुत्तरित कर दिया और वे घिघियानी सी हंसी हंसने लगीं। मेरे दिमाग में भी झनझनाहट हुई। जब उस आंटी ने बुरा सा मुंह बनाया तो मैंने स्थिति को संभालते हुए बर्फी की प्लेट उनके सामने करते हुए कहा कि चलो छोड़ो लक्ष्मी आई है कि सरस्वती, आप मुंह मीठा करो। वो महिला तो मुंह मीठा करके अपना सा मुंह लेकर चली गई पर मुझे लगा कि स्थिति संभली नहीं है। और यह वह स्थिति है कि जिसे संभालना आसान नहीं होता है। शताब्दियों से हमने अपनी बेटियों के रूप में लक्ष्मी को देखा पर बेटी मंे बेटी के रूप को नहीं देखा मानो हम बेटी में लक्ष्मी देखकर स्वयं को तसल्ली दे रहे हों। क्या बेटियां कोई करंसी या सोने-चांदी के सिक्के है जो घर की अर्थव्यवस्था को संभाल लेंगी? और फिर जब कोई देवी उनके रूप में देखनी है तो सरस्वती क्यों नहीं? इसका सीधा सा अर्थ यही है कि इस समाज को दौलत सेे ऊपर कभी कुछ लगा ही नहीं। आज भी हमारी करोड़ो लक्ष्मियां तो ऐसी हैं जो स्कूल की दहलीज तक कभी जा ही नहीं पाई और उन्हें अपना नाम चाहे वो लक्ष्मी हो या सरस्वती, लिखना-पढ़ना तक नहीं आता है। और एक पाठ तो इस समाज को भी पढ़ना ही होगा जिसमें लोगों को सिखाया जाए कि प्रसव-पीड़ा सहकर जिस मां ने संतान रूप में बेटी या बेटा जो भी पैदा किया है, उसे गले से लगाया जाए।

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