महर्षि वाल्मीकि ने रावण को महात्मा कहा है। सुबह के समय लंका में पूजा-अर्चना, शंख और वेद ध्वनियों से गुंजायमान वातावरण का रामायण में अलौकिक चित्रण है। रावण अतुलित ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का मर्मज्ञ था। एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ राष्ट्रनायक था।
अशोक वाटिका जैसा विराट बाग तथा नदियों पर बनवाए गए पुल प्रजा के प्रति उसकी कर्तव्यनिष्ठा के प्रमाण हैं। स्वयं हनुमानजी उसके धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र संबंधी ज्ञान का लोहा मानते थे। महान शिवभक्त होने के साथ-साथ उसने घोर तपस्या के द्वारा ब्रह्मा से भी वर प्राप्त किए थे। आकाशगामिनी विद्या तथा रूप परिवर्तन विद्या के अलावा पचपन विद्याओं के लिए रावण ने पृथक तपस्याएँ की थीं।
यत्र-तत्र फैली वैदिक रचनाओं का कुशल संपादक रावण अंक-प्रकाश, इंद्रजाल, कुमाक्र तंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद-भाष्य, रावणीयम (संगीत), नाड़ी-परीक्षा, अर्कप्रकाश, उड्डीश तंत्र, कामचाण्डाली, रावण भेंट आदि पुस्तकों का रचनाकार भी था। रावण ने शिव-तांडव स्तोत्र तथा अनेक शिव स्तोत्रों की रचना की। यह अद्भुत है कि जिस रावण को हम हर वर्ष जलाते हैं, उसी रावण ने लंका के ख्यात आयुर्वेदाचार्य सुषेण द्वारा अनुमति माँगे जाने पर घायल लक्ष्मण की चिकित्सा करने की अनुमति सहर्ष प्रदान की थी।
संयमी रावण ने सीता को अंत:पुर में नहीं रखा, राम का वनवास-प्रण खंडित न हो, अत: अशोक वन में सीता को स्त्री-रक्षकों की पहरेदारी में रखा। रावण ने सीताजी द्वारा उपहास किए जाने के बावजूद, बलप्रयोग कदापि नहीं किया, यह उसकी सहनशीलता और संयमशीलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सीताहरण के पूर्व, शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने के प्रतिशोधरूप नीतिपालक रावण ने वनवासी राम पर आक्रमण नहीं किया, उन्हें अपनी सेना बनाने की, सहायक ढ़ूँढने की पूरी कालावधि दी। रावण से रक्षा हेतु राम को अमोघआदित्य स्तोत्र का मंत्र देने वाले ऋषि अगस्त्य का यह कथन हमारे नेत्र खोल देने वाला होगा- 'हे राम! मैं अपनी संपूर्ण तपस्या की साक्षी देकर कहता हूँ कि जैसे कोई पुत्र अपनी बूढ़ी माता की देख-रेख करता है वैसे ही रावण ने सीता का पालन किया है।Ó (अध्यात्म- रामायण)
उसने अपनी राज-सत्ता का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, शंखद्वीप, कुशद्वीप, यवद्वीप और आंध्रालय को जीतकर अपने अधीन किया था।
इसके पहले वह सुंबा और बालीद्वीप को जीत चुका था। सुंबा में मयदानव से उसका परिचय हुआ। मयदानव से उसे पता चला कि देवों ने उसका नगर उरपुर और पत्नी हेमा को छीन लिया है। मयदानव ने उसके पराक्रम से प्रभावित होकर अपनी परम रूपवान पाल्य पुत्री मंदोदरी से विवाह कर दिया।
इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। दरअसल माली, सुमाली और माल्यवान नामक तीन दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल पर्वत पर बसाई लंकापुरी को देवों और यक्षों ने जीतकर कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी। अपने नाना के उकसाने पर रावण ने अपनी सौतेली माता इलविल्ला के पुत्र कुबेर से युद्ध की ठानी परंतु पिता ने लंका रावण को दिला दी तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। इसी तारतम्य में रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया।
वाल्मीकिजी ने लिखा है- मृत्यु के समय ज्ञानी रावण राम से व्यंग्य पूर्वक कहता है- 'तुम तो मेरे जीते-जी लंका में पैर नहीं रख पाए। मैं तुम्हारे जीते-जी तुम्हारे सामने तुम्हारे धाम जा रहा हूँ।Ó
भगवान राम ने अनेक बार उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। श्रीराम द्वारा अपने आराध्यदेव शिव की लंका प्रयाण के समय सेतुबंध रामेश्वर में प्राण-प्रतिष्ठा रावण जैसे अद्वितीय वेदमर्मज्ञ पंडित से करवाई जाना, रावण के शिवभक्त होने का अकाट्य और प्रकट प्रमाण है। total state
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Sunday, 21 November 2010
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