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राजकमल कटारिया

Raj Kamal Kataria

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Sunday, 21 November 2010

सूचना का अधिकार

बीसवीं सदी में आज मनुष्य के हाथ जिस का नाम (आरटीआई) सूचना का अधिकार जैसा हथियार लग गया है जो देशवासियों के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हो रहा है. वैसे तो देश में लोकतंत्र आजादी से पहले से ही जन्म ले चुका है लेकिन असली आजादी इस अधिकार रूपी हथियार के रूप में अब मिली है. हम 70-75 वर्ष पहले के भारत को देखें तो हर व्यक्ति अपने अधिकार को एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौंप देता था जिसे राजा कहा जाता था. उस समय भी मानव स्वतंत्र तो था, लेकिन अपने राजा के आगे उसे अपने हक व अधिकार का उपयोग करना एक तरह से मना ही था. अंग्रेजों के आने के बाद देश की शासन व प्रशासन प्रणाली वैसी नहीं रही और अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद देश की शासन व प्रशासन प्रणाली फिर बदली. ठीक उसी तरह 12 अक्टूबर 2005 को देश के हर व्यक्ति को मानवाधिकार प्राप्त हुआ जिसका नाम सूचना का अधिकार (आरटीआई) है. इस अधिकार के प्राप्त होते ही देश में एक नए लोकतंत्र का उदय हुआ.

सूचना के अधिकार के माध्यम से देश के हर नागरिक को देश व प्रदेशों के शासन व प्रशासन से उसके कार्य को लेकर व नागरिक से जुड़े हर पहलू के बारे में सवाल करने के लिए नई लोकतांत्रिक भूमिका में ला खड़ा कर दिया है. इस अधिकार के तहत देश के हर नागरिक को अपने प्रलंबित कामों के लिए सरकारी दफ्तरी बाबुओं के आगे गिड़गिड़ाने की आवश्यकता नहीं रही. अगर आप का काम नहीं हुआ तो आप सरकारी कर्मचारी व बड़े अधिकारी तक को अपने सवालों के घेरे में लेकर उनसे पूछ सकते हैं कि आपने मेरा काम क्यों नहीं किया. इस बात को कहने में भी संकोच नहीं रहा कि आपको महीने भर की पगार किस काम की दी जाती है? यही सूचना का अधिकार ब्रह्मास्त्र बनकर हर नागरिक के हाथ लगा है जिसके आगे हर कोई नतमस्तक है.

लेकिन यह कानून लागू क्यों हुआ? आज कई लोगों के दिमाग को यह बात सुन्न कर चुकी है. असल में सूचना का अधिकार देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने का नाम है. भ्रष्टाचार नामक दीमक को नष्ट करना है जो देश की जड़ों में लग चुकी है और हर साख तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. वैसे तो स्वीडन विश्व का पहला देश है जिसने 240 वर्ष पहले सूचना का अधिकार लागू किया था. वहीं 1766 को (फ्रीडम ऑफ प्रैस) एक्ट पारित हुआ था. उसके बाद फिनलैंड में 1959 को कानून के रूप में सूचना का अधिकार लागू हुआ. उसके बाद अमेरिका में 1966 में कानून लागू हुआ. इसी तरह हर दो-तीन वर्षों के बाद विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाड़ा, न्यूजीलैंड आदि देशों में सूचना का अधिकार लागू हुआ था.

भारत में सिर्फ राजस्थान पहला राज्य है जिसने सूचना का अधिकार लागू करने की कोशिश की. यहां पर मजदूर संगठनों ने मिलकर आंदोलन किया और देश में पहला कानून सूचना का अधिकार राजस्थान की बजाय तमिलनाडू में 17 अप्रैल 1997 को लागू हुआ. इसके तीन महीने बाद गोवा, उसके बाद मध्य प्रदेश, 2000 को कर्नाटक व 2001 में दिल्ली के बाद महाराष्ट्र में 2002 को सूचना का अधिकार लागू हुआ. यह कानून बनाने के लिए राजस्थान के निखिल डे, दिल्ली के अरविंद केजरीवाल व महाराष्ट्र के अन्ना हजारे ने बहुत बड़ा योगदान दिया. इसके बाद केंद्र सरकार ने पूरे देश में 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून सूचना का अधिकार लागू कर दिया. कानून के लागू होते ही कई शहरों व विभागों में हड़कंप मच गया. कुछ लोगों के खुशी से चेहरे लाल हो गए और कुछ बगलें झांकने को मजबूर हुए.

लेकिन आरटीआई है क्या और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाए, अभी तक पूरी तरह से मालूम नहीं था. मगर फिर भी देश के हर एक व्यक्ति को इसकी परिभाषा का ज्ञान एक दूसरे के माध्यम से हो रहा है, आज देश में कई बड़े शहरों में सूचना का अधिकार के नाम से संगठन, बड़े क्लब व कई समूह बन चुके हैं. जिनके माध्यम से नागरिकों को सूचना अधिकार का सही उपयोग बताया जा रहा है. इतना होने के बावजूद इसका सही उपयोग कुछ प्रतिशत ही हो रहा है. कुछ लोगों की सोच तो बिल्कुल इस कानून के विपरीत होती नजर आ रही है.

अगर अपने विभाग में किसी कर्मचारी की अपने अधिकारी से अच्छी बनती है या फिर अधिकारी के किसी मशहूर नेता से अच्छे संबंध हैं, उसके यहां आना जाना है तो उसी विभाग का कोई कर्मचारी झट से आरटीआई आवेदक के पास पहुंच जाता है और अपनी विभाग की कई जानकारियां देते हुए विभाग में कर्मचारी, अधिकारी या विभाग से जुड़ी जानकारियां प्राप्त करने के लिए आवेदन करवाता है. और फिर जब तक उस विभाग से जानकारी नहीं आ जाती तब तक कर्मचारी की आंखें विभाग के हर कर्मचारी की हरकतों पर गड़ी रहती है. अपने कार्य की तरफ कम और दूसरे की हरकतों पर ज्यादा ध्यान रहता है ऐसा क्यों? शायद इसीलिए कि जिस कर्मचारी के माध्यम से सूचना के अधिकार में सूचना मिली है, उस कर्मचारी को उसके हक(अपनी तरफ से बना लिए गए सुविधा शुल्क) की सही कीमत नहीं मिली होगी, या फिर विभाग में जितना पैसा आया था उसमें से कुछ प्रतिशत हिस्सा बड़े अधिकारी ने अपने हित के लिए खर्च कर लिया होगा और जिसके बंटवारे में वह कर्मचारी भी माल कूटना चाहता होगा जिसने आरटीआई के माध्यम से जानकारी लेने के लिए आवेदन करवाया है. अब अधिकारी की तो वाट लग गई. ऐसे ही कई मामले बड़े देशों से लेकर छोटे शहरों तथा गांवों तक में सामने आ रहे है. कई विभागों व संस्थाओं की सूचना प्राप्त करने के बाद कुछ भी घोटाला या भ्रष्टाचार जैसा साबित कुछ भी नहीं होता. मगर विभाग की 15 से 20 दिनों तक जान आफत में आ जाती है.

आज देश में ग्रामीण रोजगार के तहत देश के देहाती बड़े-छोटे शहरों व गांव में मनरेगा का कार्य जोर-शोर से चल रहा है और इसका फायदा गांव में रहने वाले काफी लोगों को हुआ है. इससे रोजगार भी मिला, धन भी मिला, साथ ही साथ अपने ही गांव में पानी, स्कूल तथा सड़कों का कई प्रकार से विकास हुआ. जो लोग रोजगार कमाने के लिए घर से बाहर जाते थे उन्हें अब मनरेगा में घर पर ही रोजगार मिल रहा है. इस कार्य में सबसे ज्यादा महिलाएं आगे आई हैं. जिन महिलाओं ने कभी रुपयों को अपने हाथ में पकड़ कर ठीक ढंग से नहीं देखा था उन्होंने भी धन राशि एकत्रित करना सीख लिया है, लेकिन नरेगा में जितना ज्यादा धन और रोजगार है इसमें उतना ही भ्रष्टाचार भी पनप रहा है. मनरेगा में हुई धांधलियों का पर्दाफाश भी तो सूचना अधिकार के कारण ही हुआ है. इतना ही नहीं कई पंचायत कर्मचारियों के साथ-साथ प्रधानों को भी भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने पर अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है.

बहुत से आरटीआई आवेदक इसकी सही जानकारी प्राप्त करके दूसरे लोगों को जागरूक करने की बजाय इसका उपयोग भ्रष्टाचार फैलाने में कर रहे हैं. आज देश में सैंकड़ों विभाग ऐसे हैं जिनकी कार्यशैली पर किसी ने आज तक आंख तक नहीं उठाई है और इन विभागों में भ्रष्टाचार हुआ या नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता लेकिन कुछ लोग आरटीआई के माध्यम से विभागों की जानकारी प्राप्त कर पकड़ेे जाने पर बड़े अधिकारी से सांठगांठ करके भ्रष्टाचार के ऊपर पड़े परदे को उठाने के बजाय भ्रष्टाचार पर और परदा डाल रहे हैं. यह आरटीआई का उपयोग है या दुरूपयोग इस बात को भलीभांति जाना जा सकता है।

आज ज्यादातर लोग आरटीआई का उपयोग अपनी पैंशन, ऐरियर, प्रोमोशन या अपनी महीनेभर के पगार को बढ़ाने मात्र के लिए कर रहे हैं. लेकिन आरटीआई अपने हित के साथ-साथ जनता के कार्यहित में उपयोग लाने वाले कानून का नाम है न कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए. आरटीआई के माध्यम से हम अपने गांव या शहर में आने वाले पैसों का सही उपयोग जान सकते हैं. धनराशि जनता के कार्य में लग रही है कि नहीं, यह जानकारी सूचना अधिकार के माध्यम से ले सकते हैं तथा किसी भी विभाग में होने वाले घोटाले या भ्रष्टाचार को खत्म करने में आरटीआई सक्षम है. देश में आरटीआई के माध्यम से हजारों लोगों के साथ-साथ विभागों और प्रशासन को भी फायदा हुआ हैं. विभागों में बैठे हुए कई भ्रष्ट कर्मचारियों को भी आरटीआई की माध्यम से ही पकड़ा गया है. आज देश के जरूरतमंदों को अनाज, मकान व रोजगार तक आरटीआई के माध्यम से ही प्राप्त हुआ है. कई गांवों को अपना अधिकार मिला है और इन गांव में वर्षों से रुकी हुई कार्ययोजना को भी आरटीआई के माध्यम से नया रूप मिला है, लेकिन भ्रष्टाचार की दीमक अभी भी कई विभागों में सरकारी धन व जनता के अधिकारों को चाटने में लगी हुई है, जिसको बाहर निकाल फेेंकना अति आवश्यक है.

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