यह त्यौहार अरबी में ईद-उल-जुहा और भारतीय उपमहाद्वीप में बकरीद के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस अवसर पर बकरे की कुर्बानी या बलि की परंपरा है। ईद-उल-जुहा में ईद शब्द अरबी भाषा के आईद से बना, जिसका अर्थ है उत्सव। इसी प्रकार जुहा शब्द अरबी शब्द उज्जहैय्या से बना जिसका अर्थ होता है बलिदान या कुर्बानी। इस दिन मुसलमान एक बकरे की कुर्बानी देता है। यह परंपरा पैगम्बर हजरत इब्राहीम की याद में निभाई जाती है। जो अल्लाह के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। ईद-उल-जुहा इस्लामी कैलेंडर के जिलहज मास के दसवें से बारहवें दिन मनाया जाता है। विभिन्न देशों में यह उत्सव तीन दिन या अधिक समय तक मनाया जाता है। इस त्योहार की परंपरा मुस्लिम धर्म के तीर्थ स्थान मक्का में हज यात्रा की रस्म से जुड़ा है। ईद-उल-जुहा का त्योहार सऊदी अरब में दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा माउंट अराफात से नीचे उतर कर मक्का की हज यात्रा पूर्ण होने के अंतिम दिन मनाया जाता है। इस दिन मस्जिदों में नमाज एवं प्रार्थना की जाती है और कुर्बानी दी जाती है। ईद की नमाज और इबादत के बाद कुर्बानी का मांस गरीबों में भी बांटा जाता है। यह परंपरा का पालन हर मुसलमान अपने-अपने देश में भी करता है। यह रमजान महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिन बाद मनाया जाता है। बकरीद का त्योहार पैगम्बर हजरत इब्राहीम की अल्लाह में आस्था की परीक्षा में सफलता और अल्लाह द्वारा कुर्बानी स्वीकार करने के रूप में मनाया जाता है। मक्का के पास मीना में हजरत इब्राहीम ने अपने सबसे प्रिय व्यक्ति की कुर्बानी करने के अल्लाह का आदेश पाकर अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माइल के गले पर तलवार रखी। किंतु खुदा की कृपा से इस्माइल के स्थान पर एक दुम्बा (जो भेड़ की नस्ल का होता है) कुर्बान हुआ।परंपरा के अनुसार, अमीर परिवार में प्रति व्यक्ति एक जानवर कुर्बान कर उस मांस का दो तिहाई भाग गरीबों के बीच के वितरित करते हैं। जिन व्यक्ति की सामथ्र्य कम हो, उन परिवारों में एक जानवर को कुर्बान किया जा सकता है। बहुत गरीबों के लिए सात या सत्तर परिवार एक साथ मिलकर एक जानवर की कुर्बानी कर सकते हैं। रोग से मुक्त ऊंट, बकरी या भेड़ हो, सबसे अच्छी कुर्बानी माना जाता है। ईद के तीसरे दिन तक दोपहर से पहले किसी भी समय की कुर्बानी दी जा सकती है। भारत में भी सभी प्रदेशों में बकरी और भेड़ की कुर्बान दी जाती है और दुआएं की जाती हैं। जिस तरह मीठी ईद पर सदका और दान दिया जाता है, उसी प्रकार बकरीद पर कुर्बानी के मांस का एक भाग गरीबों को दिया जाता है। मूलत: कुर्बानी का एक हिस्सा स्वयं के लिए, दूसरा परिजनों एवं रिश्तेदारों के लिए और तीसरा गरीबों के दान के लिए होता है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-जुहा का दिन पैगम्बर हजरत के खुदा के प्रति समर्पण भाव को याद दिलाता है। यह हज यात्रा (मक्का की तीर्थयात्रा) पूरी होने का दिन भी होता है। इसलिए ईद-उल-जुहा को हजारों मुसलमानों के द्वारा शांति और समृद्धि के लिए अल्लाह की विशेष इबादत करते हैं, नमाज अदा करते हैं, दुआएं की जाती है। इस्लाम धर्म के अनुसार, यह दिन पवित्र कुरान के पूर्ण होने की घोषणा का भी माना जाता है।ईद-उल-जुहा या बकरीद का त्योहार पूरी दुनिया में मुसलमानों के बीच काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी मुस्लिम पुरुष और महिलाएं नए वस्त्र पहनते हैं और एक-दूसरे को बधाई और उपहारों का आदान-प्रदान होता है। भारत में यह त्योहार कुर्बानी के दिन के रूप में पारंपरिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है।कुर्बानी और गरीबों को दान के बाद सभी मुसलमान एक-दूसरे को ईद मुबारक बोलकर शुभकामनाएं देते हैं। अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाते हैं। इस दिन विशेष व्यंजनों को तैयार किया जाता है और परिवार, दोस्तों को परोसा जाता है तथा तोहफे इस शुभ दिन पर दिए जाते हैं। यह पर्व धर्म और ईश्वर के प्रति समर्पण भाव पैदा करता है। साथ ही समाज में आपसी प्रेम, भाईचारे की भावना एवं गरीबों,दीन-दुखियों के प्रति संवेदना के भाव जगाता है।total state
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राजकमल कटारिया
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